Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 418 सूत्रकृतीग-तेरहवां अध्ययन-याथातथ्य क्रुसाध के कुशील एवं ससाधु के शील का यथा तथ्य निरुपण 558 अहो य रातो य समुट्ठितेहि, तहागतेहि पडिलन्भ धम्मं / समाहिमाघातमझोसयंता, सस्थारमेव फरुमं वयंति // 2 // 556 विसोहियं ते अणुकाहयंते, जे आतभावेण वियागरेज्जा। अट्ठाणिए होति बहुगुणाणं, जे णाणसंकाए मुसं वदेज्जा // 3 // 560 जे यावि पुट्टा पलिउंचयंति, आदाणमढें खलु वंचयंति / असाहुणो ते इह साधुमाणी, माण्ण एसिति अणंतर्घतं // 4 // 561 जे कोहणे होत जगट्ठभासी, विमोसियं जे उ उदीरएज्जा। अंधे व रे दं पहं पहाय, अविओसिए घासति पावकम्मी // 5 // 562 जे विगहीए अन्नायभासी, न से समे होति अझंझपत्ते। ओवायारो य हिरोमणे य, एगतंदिट्ठी य अमाइरूवे // 6 / / 563 से पेसले सुहमे पुरिसजाते, जच्चण्णिए चेव सुउज्जुयारे। बहुं पि अणुसासिते जे तहच्चा, समे हु से होति अझंझपत्ते / / 7 / / 564 जे आवि अप्पं वसुमं ति मंता, संखाय वादं अपरिच्छ कुज्जा। तवेण वा हं सहिते त्ति मंता, अण्णं जणं पस्सति बिंबभूतं // 8 // 565 एगंतकूडेण तु से पलेति, ण विज्जती मोणपदंसि गोते। ज माणणद्वेण विउक्कसेज्जा, वसुमण्णतरेण अबुज्झमाणे // 6 // 566 जे माहणे जातिए खत्तिए था, तह उग्गपुत्ते तह लेच्छती वा। जे पव्वइते परदत्तभोई, गोत्ते ण जे थन्भति माणबद्ध // 10 // 567 ण तस्स जातो व कुलं व ताणं, णण्णत्थ विज्जा-चरणं सुचिण्णं / णिक्खम्म जे सेवतिऽगारिकम्म, ण से पारए होति विमोयणाए // 11 // 58. दिन-रात सम्यक् रूप से सदनुष्ठान करने में उद्यत श्रुतधरों तथा तथागतों (तीर्थंकरों से श्रुत-चारित्र) धर्म को पाकर तीर्थंकरों आदि द्वारा कथित समाधि (सम्यग्दर्शनादि मोक्षपद्धति) का सेवन न करने वाले कुसाधु (जामालि, बोटिक आदि निन्हव) अपने प्रशास्ता धर्मोपदेशक (आचार्य या तीर्थकरादि) को कठोर शब्द (कुवाक्य) कहते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org