Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ गाथा 585 से 596 'सुबंभचेर इसेज्जा'-आचारांग सूत्र के अनुसार ब्रह्मचर्य में निवास करने के चार अर्थ फलित होते हैं-(१) ब्रह्म (आत्मा या परमात्मा) में विचरण करना, (2) मैथुनविरति- सर्वेन्द्रिय-संयम, (3) सदाचार और (4) गुरुकुल में वास / 'ठाणओ'-- में ठाण, (स्थान) शब्द भी पारिभाषिवा है / स्थान शब्द भी आचारांग के अनुसार यहाँ कायोत्सर्ग अर्थ में है। गुरुकुलवासी साधुद्वारा शिक्षा-ग्रहण-विधि 585 सहाणि सोच्चा अदु भेरवाणि, अणासवे तेसु परिवएज्जा। निदं च भिवखू न पमाय कुज्जा, कहकहं पी वितिगिच्छतिणे // 6 // 586 डहरेण वुढ्डेणऽणुसासिते ऊ, रातिणिएणावि समन्वएणं / सम्म तगं थिरतो णाभिगच्छे, णिज्जंतए वा वि अपारए से // 7 // 587 विउट्टितेणं समयाणुसिठे, डहरेण वुढ्डेण व चोइतेतु / अच्चुट्ठिताए घडदासिए वा, अगारिणं वा समयाणुसिठे 1 // 588 ग तेसु कुज्झे ग य पव्वहेज्जा, ण यावि किचि फरुसं वदेज्जा। तहा करिस्सं ति पडिस्सुणेज्जा, सेयं खु मेयं ण पमाद कुज्जा // 6 // 586 वर्णसि मूढस्स जहा अमूढा, मग्गाणुसासंति हितं पयाणं / तेणावि मझं इणमेव सेयं, जं मे बुहा सम्मऽणुसासयंति / / 10 / / 560 अह तेण मूढेण अमूढगस्स, कायव्व पूया सविसेसजुत्ता। - एतोवमं तत्थ उदाहु वीरे, अणुगम्म अत्थं उवणेति सम्म // 11 // 561 या जहा अंधकारंसि राओ, मग्गं ण जाणाइ अपस्समाणं / i, मग विजाणाति पगासियंसि // 12 // 562 एवं तु सेहे वि अपुठ्ठधम्मे, धम्म न जाणाति अबुज्झमाणे। से कोविए जिणवयणेण पच्छा, सूरोदए पासति चक्षुणेव // 13 / / 593 उड्ढे अहे य तिरिय दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा। सया जते तेसु परिवएज्जा, मणप्पदोसं अविकंपमाणे // 14 // 3 देखिए आचा० द्वि० श्रु० अ० 2 उ०१ सू० 412 में 'ठाणे वा सेज्जं वा का विवेचन तथा प्र० श्र० के सूत्र 143 में 'वसित्ता बंभचेर' पद का विवेचन / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org