Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ याथातथ्य-त्रयोदश अध्ययन प्राथमिक 0 सूत्रकृतांग (प्र० श्रु०) के तेरहवें अध्ययन का नाम याथातथ्य या यथातथ्य है / - यथातथ्य का अर्थ है-यथार्थ, वास्तविक, परमार्थ अथवा जैसा हो, वैसा / - नियुक्तिकार ने 'तथ्य' शब्द के मुख्यतया चार निक्षेप किये हैं-नाम तथ्य और स्थापना तथ्य सुगम है / सचित्तादि पदार्थों में से जिस पदार्थ का जैसा स्वभाव या स्वरूप हो, उसे द्रव्य की प्रधानता को लेकर द्रव्य तथ्य कहते हैं, जैसे पृथ्वी का लक्षण कठिनता, जल का द्रवत्व। तथा मनुष्यों आदि का जैसा मार्दव आदि स्वभाव है, तथा गोशीर्ष चन्दनादि द्रव्यों का जैसा स्वभाव है, उसे द्रव्यतथ्य कहते हैं। भाव तथ्य औदयिक आदि 6 भावों को यथार्थता को भाव तथ्य जानना चाहिए अथवा आत्मा में रहने वाला 'भावतथ्य' चार प्रकार का है-१. 'ज्ञानतथ्य' (पांच ज्ञानों द्वारा वस्तु का यथार्थ स्वरूप जानना) 2. 'दर्शन तथ्य' (जीवादि तत्त्वों पर यथार्थ श्रद्धा करना), 3. 'चारित्रतथ्य' (17 प्रकार के संयम और 12 प्रकार के तप का शास्त्रोक्तरीति से पालन करना) और 4. विनयतथ्य (ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और उपचार रूप से 42 प्रकार से विनय की यथायोग्य आराधना करना)। - अथवा प्रशस्त और अप्रशस्त भावतथ्य में से प्रस्तुत अध्ययन में प्रशस्त भावतथ्य का अधिकार है। नियुक्तिकार की दृष्टि में प्रशस्त भावतथ्य का तात्पर्य है - सुधर्मास्वामी आदि आचार्यों की परम्परा से जिस सूत्र का सर्वज्ञोक्त जो अर्थ या व्याख्यान है, सरलता, जिज्ञासा बुद्धि एवं निरभिमानता के साथ उसी प्रकार से अर्थ और व्याख्या करना, तदनुसार वैसा ही आचरणअनुष्ठान करना यथातथ्य है, किन्तु परम्परागत सूत्रार्थ और व्याख्यान के विपरीत कपोलकल्पित कुतर्क-मद से विकृत अर्थ और व्याख्यान करना अयथातथ्य है / 0 प्रस्तुत अध्ययन में पूर्वोक्त भाव तथ्य की दृष्टि से साधुओं का प्रशस्त ज्ञानादि तथ्यरूप शील का तथा असाधुओं के इससे विपरीत शील (स्वभाव एवं स्वरूप) का वर्णन किया गया है / यथातथ्य वर्णन होने के कारण इस अध्ययन को 'याथातथ्य' कहा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org