Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 264 सूत्रकृतांग--पंचम अध्ययन-नरकविभक्ति 321. छिदंति बालस्स खुरेण नक्कं, उट्टे वि छिदंति दुवे वि कण्णे / जिब्भं विणिक्कस्स विहत्थिमेतं. तिक्खाहिं सूलाहिं तिवातयंति // 22 // 322. ते तिप्पमाणा तलसंपुड व्व, रातिदियं जत्थ थणंति बाला / गलंति ते सोणितपूयमंसं, पज्जोविता खारपदिद्वितंगा // 23 // 323. जइ ते सुता लोहितपूयपाइ, बालागणोतेयगुणा परेणं / कुम्भी महंताधियपोरुसीया, समूसिता लोहितपूयपुण्णा // 24 / / 324. पक्खिप्प तासुपपर्यति बाले, अट्टस्सरं ते कलुणं रसते / तण्हाइता ते तउ तंबतत्तं, पज्जिज्जमाणट्टतरं रसंति / / 25 // 305 नरक में उत्पन्न वे प्राणी (अन्तर्मुहूर्त में शरीर धारण करते ही) मारो काटो (छेदन करो) भेदन करो, 'जलाओ' इस प्रकार परमाधार्मिकों के (कठोर) शब्द प्लुनकर भय से संज्ञाहीन हुए चाहते है कि हम किस दिशा में भाग जाएँ। 306. जलती हुई अंगारों की राशि तथा ज्योति (प्रकाशित होती हुई ज्वाला) सहित तप्त भूमि के सदृश (अत्यन्त गर्म ) नरक भूमि पर चलते हुए अतएव जलते हुए वे नरक के जीव करुण रुदन करते हैं। उनकी करुण ध्वनि स्पष्ट मालूम होती है। ऐसे घोर नरकस्थान में (इसी स्थिति में) वे चिरकाल तक निवास करते हैं। 307. तेज उस्तरे (क्षुर) की तरह तीक्ष्ण धारा वाली अतिदुर्गम वैतरणी नदी का नाम शायद तुमने सुना होगा, वे नारकीय जीव वैतरणी नदी को इस प्रकार पार करते हैं, मानो बाण मार कर प्रेरित किये हुए हो, या भाले से बींधकर चलाये हुए हो। 308. नौका (पर चढ़ने के लिए उस) के पास आते ही नारकी जीवों के कण्ठ में असाधु का (परमाधामिक) कोल चुभोते हैं, (इससे) वे (नारकीय जीव) स्मृति विहीन (होकर किंकर्तव्य विमूढ़) हो जाते हैं, तब दूसरे नरकपाल उन्हें (नारकों को) लम्बे-लम्बे शूलों और त्रिशूलों से बींधकर नीचे (जमीन पर) पटक देते हैं। 306. किन्हीं नारकों के गले में शिलाएँ बाँधकर उन्हें अगाध जल में डुबा देते हैं। वहाँ दुसरे परमाधार्मिक उन्हें अत्यन्त तपी हुई कलम्बुपुष्प के समान लाल सूर्ख रेत में और मुर्मुराग्नि में इधरउधर फिराते हैं और पकाते (भूजते) हैं। 310. जिसमें सूर्य नहीं है, ऐसा असूर्य नामक नरक महाताप से युक्त है तथा जो घोर अन्धकार से पूर्ण है, दुष्प्रतर (दुःख से पार करने योग्य) है, तथा बहुत बड़ा है, जिसमें ऊपर नीची एवं तिरछी (सर्व) दिशाओं में प्रज्वलित आग निरन्तर जलती रहती है / 311. जिस नरक में गुफा (के आकार) में स्थापित अग्नि में अतिवृत्त (धकेला हुआ) नारक अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org