Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 384 सूत्रकृतांग-दशम अध्ययन-समाधि समाधि एवं तप:समाधि की प्राप्ति के लिए प्रेरणा सूत्र हैं। समाधि प्राप्ति के ये प्रेरणा सूत्र इस प्रकार है-मूल-गुण रू: आचार समाधि प्राप्ति के लिए -(1) समाधि धर्म की रक्षा के लिए हिंसादि पापों का सर्वथा त्याग करे, (2) समाधि-मर्मज्ञ साधु हिंसादि पापकर्मों से निवृत्त हो जाए, क्योंकि हिंसा से उत्पत्र पापकर्म नरकादि दुःखों के उत्पादक, वैरानुबन्धी और महाभयजनक है। (3) आप्तगामी साधु मनवचन-काया से कृत-कारित- अनुमोदित रूप से असत्य आदि पापों का आचरण न करे। उत्तरगुण रूप आचार समाधि के लिए---(१) निर्दोष आहार प्राप्त होने पर भी मनोज्ञ के प्रति राग और अमनोज्ञ के प्रतिद्वष करके चारित्र को दुषित न करे, (2) उस आहार में भी न तो मूच्छित हो, न ही उसे बार-बार पाने की लालसा रखे, (3) धृतिमान हो, (4) पदार्थों के ममत्व या संग्रह से मुक्त हो, (5) पुजा-प्रतिष्ठा और कीति की कामना न करे, (6) सहजभाव से शुद्ध संयम-पालन में समुद्यत रहे। तप समाधि प्राप्ति के लिए -- (1) दीक्षा ग्रहण करके साधु अपने जीवन के प्रति निरपेक्ष होकर रहे (असंयमी जीवन जीने की आकांक्षा न रखे, (2) शरीर को संस्कारित एवं पुष्ट न करता हुआ काय व्युत्सर्ग करे, (3) तपश्चर्यादि के फल की आकांक्षा (निदान) को मन से निकाल दे, (4) न जीने की इच्छा करे, न ही मरने की, (5) संसार चक्र (कर्मवन्ध) के कारणों से या माया से विमुक्त रहकर संयम में पराक्रम करे / 5 पाठान्तर और पाख्या- वेराणुबंधीणि महबमयागि' के बदले चूर्णिसम्मत पाठान्तर है-'णेवाणभूते द परिवएज्जा', व्याख्या इस प्रकार है- "जैसे युद्ध आदि से निर्वृत-लौटा हुआ पुरुष व्यापार-रहित होने से किसी की हिंसा करने में प्रवृत्त नहीं होता, वैसे हो सावद्य कार्य से रहित पुरुष भी किसी की हिंमा न करता हुआ संयम में पुरुषार्थ करे।" // समाधि : दशम अध्ययन समाप्त / / 5 सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 193 से 165 तक का सारांश 6 (क) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टिप्पण) पृ० 88 (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पनांक 164 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org