Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ गाथा 464 से 472 373 अनायास प्राप्त लब्धियों या सिद्धियों से भी लाभ उठाने की मन में इच्छा न करे। प्राप्त शक्तियों या उपलब्धियों को वज्रस्वामीवत् विवेकपूर्वक पचाए / ' गुरु की शुश्रूषा और उपासना में अन्तर- यह है कि शुश्रूषा-गुरु के आदेश-निर्देशों को सुनने की इच्छा है, उसका फलितार्थ है-गुरु की सेवा-वैयावृत्य करके उनके मन को प्रसन्न करना, उनके आदेशों का पालन करना, जबकि उपासना गुरुचरणों में बैठकर ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना करना है, गुरु के शरीर की नहीं, गुणों की उपासना करना ही बास्तविक उपासना है / जैसे कि कहा है- “गुरु की उपासना करने से साधक ज्ञान का भाजन बनता है, ज्ञान-दर्शन-चारित्र में स्थिरतर हो जाता है। वे धन्य हैं जो जीवनपर्यन्त गुरुकुलवास नहीं छोड़ते।" ॥धर्म : नवम अध्ययन समाप्त // 0000 16 सूत्र कृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 184 17 (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति०१८४ (ख) "नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्तय / धन्ना आवकहाए गुरकुलवासं न मुञ्चति / -सू० कृ० शी० वृत्ति पत्रांक 185 में उद्धृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org