Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तांग-सप्तम अध्ययन-कुशील परिमाषित 364, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरप्ति, सायं च पातं उदगं फुसंता। उदगरस पासण सिटाय स्थिी, सिनि.सु पाणा हवे दगंसि // 14 // 395. मच्छा य कुम्मा य सिरोसिधा य, मग्गू य उट्टा दगरक्खसा य / अट्ठाणमेयं कुसला वदंति, उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति // 15 // 366. उदगं जती कम्म मलं हरेज्जा, एवं सुहं इच्छामेत्तता वा। अंधश्व णेयारमणुस्सरित्ता, पाणाणि चेवं विणिहंति मंदा // 16 // 367. पावाई कम्माई पकुव्वतो हि, सिओदगं तु जइ त हरेज्जा / सिज्झिसु एगे दगसत्तघाती, मुसं वयंते जलसिद्धिमाहु // 17 / / 368. हुतेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पातं अणि फुसंता। एवं सिया सिद्धि हवेज्ज तम्हा, अणि फुसंताण कुकम्मिणं पि // 18 // 366. अपरिक्ख दिह्र ण हु एव सिद्धी, एहिति ते घातमबुज्झमाणा। भूतेहिं जाण पडिलेह सातं, विज्ज गहाय तस-थावरेहि // 16 // 400. थणंति लुप्पंति तसंति कम्मी, पुढो जगा परिसंखाय भिक्खू / तम्हा विदू विरते आयगुत्ते, वळु तसे य पडिसाहरेज्जा // 20 // 392. इस जगत् में अथवा मोक्षप्राप्ति के विषय में कई मूढ़ इस प्रवाद का प्रतिपादन करते हैं कि . आहार का रस-पोषक-नमक खाना छोड़ देने से मोक्ष प्राप्त होता है, और कई शीतल (कच्चे जल के सेवन से तथा कई (अग्नि में घृतादि द्रव्यों का) हवन करने से मोक्ष (की प्राप्ति) बतलाते हैं। 363. प्रातःकाल में स्नानादि से मोक्ष नहीं होता, न ही क्षार (खार) या नमक न खाने से मोक्ष होता है। वे (अन्यतीर्थी मोक्षवादी) मद्य, मांस और लहसुन खाकर (मोक्ष से) अन्यत्र (संसार में) अपना निवास बना लेते हैं। 364. सायंकाल और प्रातःकाल जल का स्पर्श (स्नानादि क्रिया के द्वारा) करते हुए जो जलस्नान से सिद्धि (मोक्ष प्राप्ति) बतलाते हैं, (वे मिथ्यावादी हैं)। यदि जल के (बार-बार) स्पर्श से मुक्ति (सिद्धि) मिलती तो जल में रहने वाले बहुत-से जलचर प्राणी मोक्ष प्राप्त कर लेते। 365. (यदि जलस्पर्श से मोक्ष प्राप्ति होती तो) मत्स्य, कच्छप, सरीसृप (जलचर सर्प), मद्गू तथा उष्ट्र नामक जलचर और जलराक्षस (मानवाकृति जलचर) (आदि जलजन्तु सबसे पहले मुक्ति प्राप्त कर लेते, परन्तु ऐसा नहीं होता।) अतः जो जलस्पर्श से मोक्षप्राप्ति (सिद्धि) बताते हैं, मोक्षतत्त्वपारंगत (कुशल) पुरुष उनके इस कथन को अयुक्त कहते हैं। 366. जल यदि कर्म-मल का हरण-नाश कर लेता है, तो वह इसी तरह शुभ-पुण्य का भी हरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org