Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ महावीरस्तव (वीरस्तुति)-छठा अध्ययन प्राथमिक - सूत्रकृतांगसूत्र (प्र० श्रु.) के छठे अध्ययन का नाम 'महावीरस्तव' (वोरस्तुति) है। 0 पूर्णता का आदर्श सम्मुख रहे बिना अपूर्ण साधक का आगे बढ़ना कठिन होता है, इसलिए इस अध्ययन की रचना की गई है ताकि अपूर्ण साधक पूर्णता के आदर्श के सहारे कर्मबन्धन के मिथ्यात्वादि कारणों से दूर रहकर शुद्ध संयम तथा ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप मोक्षमार्ग पर शीघ्र गति से बढ़कर पूर्ण (ध्रुव या मोक्ष) को प्राप्त कर सके। - पहले से लेकर पांचवें अध्ययन तक कहीं मिथ्यात्व से, कहीं अविरति (हिंसा, असत्य, परिग्रह, अब्रह्मचर्य) आदि से, कहीं प्रमाद-(उपसर्गों के सहन करने या जीतने में होने वाली असावधानी) से, कहीं कषाय (द्वेष, लोभ, ई, क्रोध, अभिमान, माया आदि) से होने वाले कर्मवन्धन और उनसे छुटने का निरूपण है, कहीं घोर पापकर्मबन्ध से प्राप्त नरक और उसके दःखों का व उनसे बचने के उपाय सहित वर्णन है। अतः इस छठे अध्ययन में कर्मवन्धनों और उनके कारणों से विरत; उपसर्गों और परीषहों के समय पर्वतसम अडोल रहने वाले स्थिरप्रज्ञ, भव्यजीवों को प्रति बोध देनेवाले, स्वयं मोक्षमार्ग में पराक्रम करके प्रवल कर्मबन्धनों को काटने वाले श्रमण शिरोमणि तीथंकर महावीर की स्तुति के माध्यम से मुमुक्षु साधक के समक्ष उनका आदर्श प्रस्तुत करना इस अध्ययन का उद्देश्य है। ताकि स्तुति के माध्यम से भगवान महावीर के आदर्श जीवन का स्मरण करके साधक आत्मबल प्राप्त कर सके, तथा उन्होंने जिस प्रकार संसार पर विजय पाई थी, उसी प्रकार विजय पाने का प्रयत्न करे।' श्रमण भगवान महावीर का मूल नाम तो, 'वर्धमान' था. लेकिन अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गो और परीषहों से अपराजित, कष्टसहिष्णु, तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, त्याग में अद्भुत पराक्रम एवं आध्यात्मिक वीरता के कारण उनकी ख्याति 'वीर अथवा 'महावीर' के रूप में 1 इसका प्रचलित नाम वृत्तिकार सम्मत 'वीरस्तुति' है।-सूत्र कृ० शी० वृत्ति अनुवाद भाग 2 पृ० 247 2 (क) बीरस्तुति (उपाध्याय अमरमुनि) के आधार पर पृ० 2, (ख) सूत्र कृ• नियुक्ति गा० 85 उत्तरार्द्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org