Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 203 द्वितीय उद्देशक : गाथा 196 से 203 201. चोदिता भिक्खुचज्जाए अचयंता जवित्तए / तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि व दुब्बला // 20 // 202. अचयंता व लूहेण उवहाणेण तज्जिता। तत्थ मंदा विसीयंति उज्जाणंसि जरग्गवा / / 21 // 203. एवं निमंतणं लद्धमुच्छिया गिद्ध इत्थीसु / अझोषवण्णा कामेहि चोइज्जंता गिहं गया // 22 // त्ति बेमि / 166. राजा-महाराजा और राजमन्त्रीगण, ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय साध्वाचार (उत्तमाचार) जीवी भिक्षु को विविध भोग भोगने के लिए निमन्त्रित करते हैं। 167. हे महर्षे ! ये हाथी, घोड़े, रथ और पालको आदि सवारियों पर आप बैठिये और मनोविनोद या आमोद-प्रमोद के लिए बाग-बगोचों में सैर करिए। इन उत्तमोत्तम (श्लाघ्य) भोगों का (मनचाहा) उपभोग कीजिए / हम आपकी पूजा-प्रतिष्ठा (आदर-सत्कार) करते हैं। 198. हे आयुष्मन् ! वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, आभूषण, ललनाएँ और शय्या तथा शयनसामग्री, इन भोगों (-भोगसामग्री) का मनचाहा उपभोग करें। हम आपकी पूजा-प्रतिष्ठा करते हैं / 169. हे सुन्दर व्रतधारी (मुनिवर) ! मुनिभाव में (रहते हुए) जिस नियम (महाव्रतादि यमनियम) का आपने आचरण (अनुष्ठान) किया है, वह सब घर (गृहस्थ) में निवास करने पर भी उसी तरह (पूर्ववत्) वना रहेगा। 200. (हे साधकवर !) चिरकाल से (संयमाचरणपूर्वक) विहरण करते हुए आपको अब (भोगों का उपभोग करने पर भी) दोष कसे (लग सकता है)? (इस प्रकार लोभ दिखाकर) जैसे चावलों के दानों (के प्रलोभन) से सूअर को फंसा लेते हैं, इसी प्रकार (विविध भोगों का) निमन्त्रण देकर (साधु को गृहवास में फंसा लेते हैं।) __ 201. संयमी साधुओं की चर्या (समाचारी-पालन) के लिए (आचार्य आदि के द्वारा) प्रेरित संयमी जीवन यापन करने में असमर्थ, मन्द (अल्पपराक्रमी) साधक उस उच्च संयम मार्ग पर प्रयाण करने में उसी तरह दुर्बल (मनोदुर्बल) होकर बैठ जाते हैं जिस तरह ऊँचे मार्ग के चढ़ाव में मरियल बैल दुर्बल होकर बैठ जाते हैं। 202. रुक्ष (संयम) के पालन में असमर्थ तथा तपस्या से पीड़ा पाने वाले मन्द (अल्पसत्व अदूरदर्शी) साधक उस उच्च संयम मार्ग पर चलने में उसी प्रकार कष्ट महसूस करते हैं, जिस प्रकार ऊँचे चढ़ाई वाले मार्ग पर चलने में बूढ़े बैल कष्ट-अनुभव करते हैं। 203. इस (पूर्वोक्त) प्रकार से भोग-भोगने के लिए निमन्त्रण पाकर विविध भोगों में मूच्छित (अत्यासक्त) स्त्रियों में गृद्ध मोहित एवं काम-भोगों में रचे-पचे दत्तचित्त(-कई साधुवेषी) (उच्चाचारपरायण आचार्यादि द्वारा संयम पालनार्थ) प्रेरित किये जाने पर भी घर (गृहवास) को चले गये। -ऐसा मैं कहता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org