Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 234 सूत्रकृतांग-तृतीय अध्ययन-- उपसर्गपरिज्ञा होता है-मानते हैं / 'मन्नंति' पाठ मान्यता को सूचित करता है, इसलिए यह अधिक सगत प्रतीत होता है। अनुकूल कुत्तर्क से वासना तृप्ति रूप सुखकर उपसर्ग 233. एवमेगे तु पासत्था पण्णवेति अणारिया। इत्थीवसं गता बाला जिणससाणपरम्मुहा / / 6 / / 234. जहा गंडं पिलागं वा परिपोलेज्ज मुहत्तगं / एवं विष्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कुतो सिया ? // 10 // 235. जहा मंधादए नाम थिमितं भुजती दगं / एवं विण्णवणित्थोसु दोसो तत्थ कुतो सिया ? // 11 // 236. जहा विहंगमा पिंगा थिमितं भुजती दगं / एवं विष्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कुतो सिया ? // 12 // 237. एवमेगे उ पासत्था मिच्छादिट्ठो अणारिया / अज्झोक्वन्ना कामेहिं पूतणा इव तरुणए / 13 / / 233 स्त्रियों के वश में रहे हुए अज्ञानी जिनशासन से पराङ मुख अनार्य कई पाशस्थ या पार्श्वस्थ इस प्रकार (आगे की गाथाओं में कही जाो वाली बातें) कहते हैं : 234. जैसे फुसी या फोड़े को दबा (-कर उसका मवाद निकाल) दे तो (एक) मुहूर्त में हो (थोड़ो देर में ही) शान्ति हो जाती है, इसी तरह समागम की प्रार्थना करने वालो (युवती) स्त्रियों के साथ (समागम करने पर थोड़ी ही देर में शान्ति हो जाती है।) इस कार्य में दोष कैसे हो सकता है ? 235. जैसे मन्धादन-भेड़ बिना हिलाये जल पी लेती है, इसी तरह (किसी को पीड़ा दिये बिना) रति प्रार्थना करने वाली युवती स्त्रियों के साथ (सहवास कर लिया जाए तो) इसमें (कोई) दोष कैसे हो सकता है ? 236. जैसे पिंगा नामक पक्षिणी बिना हिलाये पानी पी लेती है, इसी तरह कामसेवन के लिए प्रार्थना करने वाली तरुणी स्त्रियों के साथ (समागम कर लिया जाए तो) इस कार्य में क्या दोष है ? 236. पूर्वोक्त रूप से मैथून-सेवन को निर्दोष-निरवद्य मानने वाले कई पाशस्थ (पावस्थ) मिथ्यादृष्टि हैं, अनार्य हैं; वे काम-भोगों में वैसे ही अत्यासक्त हैं, जैसे पूतना डाकिनी (दुधमुंहे) बच्चों पर आसक्त रहती है। 18 (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 66-67 (ख) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टिप्पण) पृ० 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org