Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 108 सूत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-समय कठिन शब्दों की व्याख्या-उक्कसं= उत्कर्ष-जिससे मनुष्य उकसा जाए-गर्वित हो जाए वह उत्कर्ष--मान / जलणं जिससे व्यक्ति अन्दर ही अन्दर जलता है, वह जलन यानी क्रोध / णूम-नूय का अर्थ है-जो प्रच्छन्न-अप्रकट-गहन-गूढ़ हों; वह माया / ममत्थं = मध्यस्थ-अर्थात् जो सारे संसार के प्राणियों के मध्य-अन्तर में रहता है, वह मध्यस्थ-लोभ / अथवा मज्झत्थं के बदले 'अज्सत्यं' पाठान्तर मानकर चूर्णिकार अर्थ करते हैं- 'अज्झयो णाम अभिप्रेयः, स च लोभः"-अध्यस्थ यानी अभिप्रेत (अभीष्ट) और वह है लोभ / चतुर्थ उद्दशक समाप्त सूत्रकृतांग सूत्र प्रथम अध्ययन : समय-समाप्त 33 (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 52 (ख) सूयगडंग चूणि (मू० पा० टिप्पण) पृ० 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org