Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 14. सूत्रकृतांग-द्वितीय अध्ययन-वैतालीय एकलविहारीमुनि-चा-- 122 एगे चरे ठाणमासणे, सयणे एगे समाहिए सिया। भिक्खू उवधाणवीरिए, वइगुत्ते अज्झप्पसंवुडे // 12 // 123 णो पोहे णावऽवंगुणे, दारं सुन्नघरस्स संजते / पुट्ठो ण उदाहरे वयं, न समुच्छे नो य संथरे तणं // 13 // 124 जत्थऽथमिए अणाउले, सम-विसमाणि मुणीऽहियासए। चरगा अदुवा वि भेरवा, अदुवा तत्थ सिरीसिवा सिया॥ 14 // 125 तिरिया मणुया य दिवगा, उवसग्गा तिविहाऽधियासिया। लोमादीयं पि ग हरिसे, सुन्नागारगते महामुणी / / 15 / / 126 णो अभिकंखेज्ज जीवियं, णो वि य पूयणपत्थए सिया। अन्भत्थमुवेंति भेरवा, सुन्नागारगयस्स भिक्खुणो // 16 // 127 उवणीततरस्स ताइणो, भयमाणस्स विवित्तमासणं। सामाइयमाहु तस्स जं, जो अप्पाणं भए ण दसए // 17 // 128 उसिणोदगतत्तभोइणो, धम्मठ्ठियस्स मुणिस्स होमतो। संसग्गि असाहु रायिहिं, असमाही उ तहागयस्स वि // 18 // 122. भिक्षु वचन से गुप्त और अध्यात्म-संवृत (मन से गुप्त) तथा तपोबली (उपधान-वीर्य) होकर अकेला (द्रव्य से सहायरहित एकाकी, और भाव से रागद्वेष रहित) विचरण करे / कायोत्सर्ग, आसन और शयन अकेला ही करता हुआ समाहित (समाधियुक्त धर्मध्यान युक्त होकर) रहे / 123. संयमी (साधु) सूने घर का द्वार न खोले और न ही बन्द करे, किसी से पूछने पर (सावद्य) वचन न वोले, उस मकान (आवासस्थान) का कचरा न निकाले, और तृण (घास) भी न बिछाए / 124. जहाँ सूर्य अस्त हो जाए, वहीं मुनि क्षोभरहित (अनाकुल) होकर रह जाए। सम-विषम (कायोत्सर्ग, आसन एवं शयन वं शयन आदि के अनकल या प्रतिकल) स्थान हो तो उसे सहन करे। वहाँ यदि डांस-मच्छर आदि हो, अथवा भयंकर प्राणी या सांप आदि हों तो भी (मुनि इन परीषहों को सम्यक् रूप से सहन करे।) 125. शून्य गृह में स्थित महामुनि तिर्यञ्चजनित, मनुष्यकृत एवं देवजनित त्रिविध उपसर्गों को सहन करे / भय से रोमादि-हर्षण (रोमांच) न करे। ___ 126. (पूर्वोक्त उपसर्गों से पीड़ित साधु) न तो जीवन की आकांक्षा करे और न ही पूजा का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org