Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सूत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन-समय में भी छूटना कठिन है, ऐसे अष्टविध कर्मबन्धों को जानने में अकोविद-अनिपुण / यह कर्मबन्ध कैसे होता है, कैसे नहीं ? यह संसार सागर कैसे पार किया जा सकता है ? इन विषयों के ज्ञान में अकुशल / आमिसत्यहि-मांसार्थी मछुओं (मछली पकड़ने वालों) द्वारा (जिंदा ही काटी जाती हैं)। चूर्णिकार सम्मत पाठान्तर है- आमिसासोहि जिसकी व्याख्या की गयी है-आमिषाशिन:-शृगाल-पभि मनुष्यमार्जगदययस्तः / अर्थात् मांसभोजी शियार, पक्षी (गिद्ध आदि), मनुष्य (मछुए, कसाई आदि) तथा बिल्ली आदि के द्वारा। कहीं-कहीं 'सुक्क सिग्छतमिति उ' पाठ की इस प्रकार संगति बिठायी गयी है-'सुक्कंसि घंतमिति'- पानी के सूख जाने पर वे (मत्स्य) अशरण-रक्षा रहित होकर घात–विनाश को प्राप्त होते हैं। घंतमिति का अर्थ चूर्णिकार ने किया है--"वन्तमेतीति-घनघोतन वा अंतं करोतीति घन्तः-घातः तम् एति-प्राप्नोतीत्यर्थः अथवा घेतो णाममच्चू तं मच्चूमेति / ' अर्थात् घनघात-सघन चोटें मारकर या पीट-पीटकर अन्त करने से विनाश को प्राप्त होते हैं, अथवा घेत का अर्थ मृत्यु, वे मृत्यु को प्राप्त होते हैं। जगत् कर्तृत्ववाद 64 इणमन्नं तु अण्णाणं इहमेगेसिमाहियं / देवउत्ते अयं लोगे बंभउत्ते त्ति आवरे // 5 / / 65 ईसरेण कडे लोए पहाणाति तहावरे / जीवा-ऽजीवसमाउत्ते सुह-दुक्खसमन्निए॥६॥ 66 सयंभुणा कडे लोए इति वुत्तं महेसिणा। मारेण संथुता माया तेण लोए असासते // 7 // माहणा समणा एगे आह अंडकडे जगे। असो तत्तमकासी य अयाणंता मुसं वदे // 8 // 68 सएहि परियाएहि लोयं बूया कडे ति य।. सत्तं ते ण विजाणंती ण विणासि कयाइ वि // 6 // 69 अमणुण्णसमुष्पादं दुक्खमेव विजाणिया। समुप्पादमयाणंता किह नाहिति संवरं // 10 // 64. (पूर्वोक्त अज्ञानों के अतिरिक्त) दूसरा अज्ञान यह भी हैं-'इस लोक (दार्शनिक जगत्) में किसी ने कहा है कि यह लोक (किसी) देव के द्वारा उत्पन्न किया हुआ है और दूसरे कहते हैं कि ब्रह्मा ने बनाया है।' 4 (क) सूत्रकृ० शीला० वृ० पत्रांक 40-41 (ख) सूत्रकृतांग चूणि (सूयगडंग मूलपाठ टिप्पण युक्त) पृ० 10-11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org