Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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२८
सूत्रकृतांग सूत्र मन्तः ! आख्यामि विभावयामि कीर्तयामि प्रवेदयामि सार्थं सहेतुं सनिमित्तं भूयो भूयः उपदर्शयामि तद् ब्रवीमि ।।सू० ७।।
लोकञ्च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तः ! पुष्करिणी उक्ता । कर्म च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तस्तस्याः उदकमुक्तम्। कामभोगं च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तस्तस्याः सेय उक्तः । जनान् जनपदांश्च खलु मया अपाहृत्य श्रमणा: आयुष्मन्तस्तानि बहूनि पद्मवरपुण्डरीकानि उक्तानि। राजानश्च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तस्तस्याः एकं महत् पद्मवरपुण्डरीकमुक्तम् । अन्ययूथिकांश्च खलु मयो अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तः ! ते चत्वारः पुरुषाः उक्ताः । धर्मञ्च खलु मया अपाहत्य श्रमणाः आयुष्मन्तः ! स भिक्षुरुक्तः । धर्मतीर्थञ्च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्त: ! तत्तीरमुक्तम्। धर्मकथाश्च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुमन्तः स शब्दः उक्तः । निर्वाणञ्च खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तः ! स उत्पातः उक्तः । एवमेतत् खलु मया अपाहृत्य श्रमणाः आयुष्मन्तः ! तदेतदुक्तम् ।।सू०८॥
अन्वयार्थ (समणाउसो नाए किट्टिए) श्रमण भगवान महावीर स्वामी कहते हैं--आयुष्मान् श्रमणो ! तुम्हारे समक्ष मैंने दृष्टान्त प्रस्तुत किया है। (अट्ठे पुण से जाणियब्वे भवइ) इसका अर्थ तुम लोगों को स्वयं समझ लेना चाहिए (भंते त्ति) हाँ भदन्त ! यह कहकर (निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति) साधु और साध्वियाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना और नमस्कार करते हैं। (वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) वे वन्दना नमस्कार करके भगवान् से इस प्रकार कहते हैं कि (समणाउसो ! किट्टिए नाए, से अट्ठ पुण ण जाणामो) आयुष्मान् श्रमण भगवान महावीर ! आपने जो उदाहरण बताये हैं, उसे हमने सुना, किन्तु उसका अर्थ (रहस्य) हम नहीं जानते। (अतः हे आयुष्मान् भगवन् ! आप ही अनुग्रह करके उसका अर्थ फरमाइये ।) (समणे भगवं महावीरे) (यह सुनकर) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने (ते य बहवे निग्गंथे य निग्गंथीओ आमंतित्ता एवं वयासी) उन बहुत से श्रमण-श्रमणियों को सम्बोधित करके इस प्रकार कहा कि (हंत समणाउसो !) आयुमान् श्रमण-श्रमणियो ! (आइक्खामि) लो, मैं उसका अर्थ (रहस्य) बताता हूँ, (विभावेमि) हेतु तथा पर्यायवाची शब्दों के द्वारा उसे प्रकट करता हूँ, (किट्टेमि) हेतु और दृष्टान्तों से उस अर्थ को हृदयंगम कराता हूँ । (सअळं सहेउं सनिमित्तं भुज्जो भुज्जो पवेदेमि) अर्थ, हेतु और निमित्त के सहित उस अर्थ को बार-बार बताता हूँ, (से वेमि) उस बात को अभी बताता हूँ ॥ ७ ॥
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