Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
२१५
जोगे आयपरक्कमे आयरक्खिए आयाणुकंपए आयनिप्फेडए आयाणमेव पडिसाहरेज्जासित्ति बेमि ॥ सू० ४२ ॥
संस्कृत छाया
इत्येतेषु द्वादशसु क्रियास्थानेषु वर्तमाना जीवाः नो असिध्यन् नो अबुध्यन् नो अमुञ्चन् नो परिनिर्वृत्ताः यावन्नो सर्वदुःखानामन्तमकार्षु र्वा नो कुर्वन्ति वा करिष्यन्ति वा । एतस्मिन्न ेव त्रयोदशे क्रियास्थाने वर्तमाना जीवाः असिध्यन् अबुध्यन् अमुञ्चन् परिनिवृत्ताः यावत् सर्वदुः खानामन्तमकार्षुर्वा कुर्वन्ति वा करिष्यन्ति वा । एवं स भिक्षुरात्मार्थी आत्महित: आत्मगुप्तः आत्मयोगः आत्मपराक्रमः आत्मरक्षितः आत्मानुकम्पकः आत्मनिस्सारकः आत्मानमेव प्रतिसंहरेदिति ब्रवीमि ॥ सू० ४२ ।।
अन्वयार्थ
( इच्चेतेहि बारसहि किरियाठाह वट्टमाणा जीवा णो सिज्झिसु णो बुज्झिसु णो मुच्चिसु णो परिणिव्वाइंसु जाव णो सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा जो करेंति वा णो करिस्सति वा ) पूर्वोक्त १२ क्रियास्थानों में स्थित जीवों ने सिद्धि नहीं प्राप्त की, न बोध तथा मुक्ति प्राप्त की है, उन्होंने निर्वाण भी प्राप्त नहीं किया, यहाँ तक कि उन्होंने समस्त दुःखों का नाश नहीं किया । वर्तमान में भी वे सिद्धि, बोध, मुक्ति, निर्वाण की प्राप्ति या समस्त दुःखों का नाश नहीं करते और न भविष्य में ही वे ऐसा करेंगे । (एयंसि चैव तेरसमे किरियाठाणे वट्टमाणा जीवा सिज्झिसु बुज्झि मुच्चिसु परिणिव्वाइंसु जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा ) परन्तु पूर्वोक्त तेरहवें क्रियास्थान में वर्तमान जो जीव हैं, उन्होंने सिद्धि, बांध, मुक्ति और निर्वाण को प्राप्त करके समस्त दुःखों का अन्त किया है, करते हैं तथा भविष्य में भी करेंगे । ( एवं से भिक्खू आयट्ठी आयहिते आयगुत्ते आयजोगे आयपरक्कमे आयरविखए आयाणुकंपए आयनिप्फेडए आयाणमेव पडिसाहरेज्जासि ) इस प्रकार १२ क्रियास्थानों को वर्जित करने वाला वह आत्मार्थी, आत्मकल्याण करने वाला, आत्मा को पापों से बचाने वाला, आत्मयोगी, आत्मभाव में पराक्रम करने वाला, आत्मरक्षक ( आत्मा को संसाराग्नि से बचाने वाला), आत्मा पर अनुकम्पा करने वाला, आत्मा का जगत् से उद्धार करने वाला उत्तम साधक ( भिक्षु ) अपनी आत्मा को सभी पापों से निवृत्त करे, (त्ति बेमि) यह मैं ( सुधर्मास्वामी ) कहता हूँ ।
व्याख्या
तेरह ही क्रियास्थानों का प्रतिफल इस सूत्र में शास्त्रकार ने अध्ययन का उपसंहार करते हुए तेरह ही क्रिया
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