Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र करते हैं, वे धर्मोपदेश के बदले किसी से कुछ भी लेते नहीं, इसलिए अपने निःस्पृह, त्यागरूप सच्चे श्रमणधर्म में स्थित है ।
ऐसे महान् पुरुष भगवान् को बनिये के सदृश वही बता सकता है, जो सावध अनुष्ठान द्वारा अपनी महाहानि करके आत्मा को दण्ड देता हो, अज्ञानी हो । गोशालक ! तुम्हारा कार्य तुम्हारी अज्ञानता का परिचायक है । तुम्हारी अज्ञानता यह है कि पहले तो तुम स्वयं कुमार्ग में प्रवृत्त हो रहे हो, उस पर भी विश्ववन्द्य एवं अतिशयधारक श्रमण भगवान् महावीर की तुलना बनिये से करते हो।
सारांश १६वीं से २५वीं गाथा तक गोशालक द्वारा भगवान महावीर को वणिक् के सदृश बताने का व्यंग्य किये जाने पर आर्द्र क मुनि द्वारा दिये गये अकाट्य युक्तियों से परिपूर्ण समाधान अंकित किये गये हैं । यहाँ तक आर्द्रक मुनि का गोशालक के साथ जो संवाद हुआ है, उसका निरूपण है। इससे आगे की गाथाओं में अन्य साधकों के द्वारा किये हुए ऊटपटांग विधानों का समाधान अंकित किया गया है।
मूल पाठ पिन्नागपिंडीमवि विद्ध सूले, केइ पएज्जा पुरिसे इमेत्ति। अलाउयं वावि कुमारएत्ति, स लिप्पई पाणिवहेण अम्हं ।। २६ ।। अहवा वि विद्ध ण मिलक्खु सूले, पिन्नागबुद्धीइ नरं पएज्जा। कुमारगं वावि अलाबुयंति, न लिप्पइ पाणिवहेण अम्हं ।। २७ ।। पुरिसं च विद्ध ण कुमारगं वा, सूलंमि केई पए जायतेए। पिन्नायपिंडं सतिमारुहेत्ता, बुद्धाण तं कप्पइ पारणाए ।॥ २८ ॥ सिणायगाणं तु दुवे सहस्से, जे भोयए णियए भिक्खुयाणं। . ते पुन्नखधं सुमहं जिणित्ता, भवंति आरोप्प महंतसंता ॥ २६ ।। अजोगरूवं इह संजयाणं, पावं तु पाणाणं पसज्झ काउं। अबोहिए दोण्ह वि तं असाहु, वयंति जे यावि पडिस्सुणंति ॥ ३०॥ उड्ढे अहेयं तिरियं दिसासु, विनाय लिंगं तसथावराणं । भूयाभिसंकाइ दुगुछमाणे, वदे करेज्जा व कुओ विहऽत्थी ? ॥ ३१ ॥ पुरिसेत्ति विन्नत्ति न एवमस्थि, अणारिए से पुरिसे तहा हु। को संभवो ? पिन्नगपिडियाए, वायावि एसा बुइया असच्चा ॥ ३२ ॥
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