Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 458
________________ सप्तम अध्ययन : नालन्दीय ४१७ श्री गौतम स्वाभी-इसी तरह श्रमणोपासक ने त्रस प्राणियों को दण्ड देने (हिंसा करने) का त्याग किया है, स्थावर प्राणियों को दण्ड देने का त्याग नहीं किया है, इस लिए स्थावरकाय में वर्तमान (स्थावर पर्याय को प्राप्त भूतपूर्व वस) को मारने से भी उसका प्रत्याख्यान भंग नहीं होता। (नियंठा ! से एवमायाणह, एवमायाणियब्वं) निम्रन्थो ! इसी तरह समझो और इसी तरह इसे समझना चाहिए। (भगवं च णं उदाहु गियंठा खलु पुच्छियव्या) भगवान् श्री गौतम स्वामी ने कहा कि श्रमणों निर्ग्रन्थों से पूछा जाए कि (आउसंतो नियंठा ! इह खलु गाहावइ वा गाहावइपुत्तो वा तहप्पगारेहि कुलेहिं आगम्म धम्म सवण बत्तियं उवसंकभेज्जा) आयुप्मान् निर्ग्रन्थो ! इस लोक में गृहपति या गृहपतिपुत्र उस प्रकार के उत्तम कुल में जन्म लेकर धर्म सुनने के लिए क्या साधुओं के पास आ सकते हैं ? (हंता उवसंकमज्जा) निर्ग्रन्थों ने कहा-हाँ, वे आ सकते हैं । (तेसिं तहप्पगाराणं धम्म आइक्खियव्वे ?) गौतम स्वामी ने पूछा-क्या उन उत्तम कुल में उत्पत्र पुरुषों को धर्म का उपदेश करना चाहिए ? (हंता आइक्खियब्वे) निर्ग्रन्थ ---हाँ, उन्हें धर्म का उपदेश करना चाहिए । (कि ते तहप्पगारं धम्म सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा- इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं संसुद्ध जयाउयं सल्लकत्तणं सिद्धिभग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमसंदिद्ध सव्वदुक्खपहीणमग्गं) वे उस प्रकार के धर्म को सुनकर और समझकर क्या यह कह सकते हैं कि यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, सर्वोत्तम है, केवलज्ञान को प्राप्त कराने वाला है, परिपूर्ण है, भलीभाँति शुद्ध है, न्याययुक्त है, हृदय के शल्य को नष्ट करने वाला है, सिद्धि का मार्ग है, मुक्ति का मार्ग है, निर्याणमार्ग है, मोक्षमार्ग है, मिथ्यात्वरहित है, सन्देहरहित है, और समस्त दुःखों के नाश का मार्ग है । (एत्थं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति) और इस धर्म में स्थित होकर जीव सिद्ध होता है, बोधप्राप्त होता है, निर्वाण को प्राप्त करता है, और समस्त दुःखों का नाश करता है। (तमाणाए तहा गच्छामो, तहा चिट्ठामो, तहा णिसियामो, तहा तुयट्ठामो तहा भुजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्ठामो तहा उट्ठाए उ8 मोत्ति पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामोत्ति वएज्जा ?) अतः हम इस धर्म की आज्ञा के अनुसार इसके द्वारा विधान की हुई रीति से यतनापूर्वक गमन करेंगे, यतनापूर्वक ठहरेंगे, यथाविधि बैठेंगे, यथाविधि करवट बदलेंगे, विधिपूर्वक आहार करेंगे, नियमपूर्वक बोलेंगे, यथाविधि उठेंगे और उठकर सम्पूर्ण प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों की रक्षा के लिए संयम धारण करेंगे, क्या वे इस प्रकार कह सकते हैं ? (हंता वएज्जा) निर्ग्रन्थों ने कहाहाँ वे ऐसा कह सकते हैं। (किं ते तहप्पगारा पव्वावित्तए कप्पंति) क्या वे इस प्रकार के विचार वाले पुरुष दीक्षा देने योग्य हैं ? (हंता कप्पति) हाँ, वे दीक्षा देने योग्य हैं । (किं ते तहप्पगारा मुडावित्तए कप्पंति) क्या वे ऐसे विचार वाले व्यक्ति मुण्डित करने योग्य हैं ? (हंता कप्पंति) हाँ, वे मुण्डित करने के योग्य हैं । (किं ते तहप्पगारा कप्पंति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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