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सूत्रकृतांग सूत्र हैं । उन पर श्रद्धा करो, उनके प्रति प्रतीति रखो और उनमें अपनी दिलचस्पी रखो। हमने जो कुछ कहा है, वह आप्तवचन होने से तथ्य-सत्यरूप है।
__उदक निम्रन्थ ने अपने हृदय-परिवर्तन को कार्यान्वित करने की दृष्टि से श्री गौतम स्वामी से कहा- 'भगवन् ! अब तो यही इच्छा होती है कि मैं आपका अभिन्न बन जाऊँ। किसी प्रकार की आचार-विचार सम्बन्धी भिन्नता न रखू । इसके लिए यही उचित है कि मैं अपनी चातुर्याम धर्म-परम्परा छोड़कर भगवान् महावीर की परम्परा में समाविष्ट प्रतिक्रमण सहित पंचमहाव्रतरूप धर्म को स्वीकार कर लूं।"
भगवान् महावीर की परम्परा में अपनी परम्परा के विलीनीकरण की बात सुनकर गौतम स्वामी मन ही मन उदक निर्ग्रन्थ की सरलता से अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहीं उदक निर्ग्रन्थ को ले जाना उचित समझा । अतः वे उदक निर्ग्रन्थ को भगवान् महावीर के पास ले गए। वहाँ पहुँचते ही उदक ने भ० महावीर से प्रभावित होकर स्वेच्छा से अपनी जीवन-संशुद्धि करने का फैसला कर लिया। उदक ने भ० महावीर की तीन बार प्रदक्षिणा देकर वन्दना की, नमस्कार किया और तब स्वयं कहा--"भगवन् ! अब मैं चाहता हूँ कि अपनी भूतपूर्व चातुर्याम परम्परा को छोड़कर आपकी सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रत-परम्परा का आपसे स्वीकार करके विचरण करूं।" भगवान महावीर ने तटस्थभाव से फरमाया"आयुष्मन् ! तुम्हें जैसा सुख हो, वैसा करो, किन्तु इस कार्य में प्रतिबन्ध न करो।"
• परम्परा-परिवर्तन में उद्यत उदक निर्ग्रन्थ ने भगवान् की सहमति पाकर उनके समक्ष अपनी चातुर्याम-परम्परा का विसर्जन कर दिया और उनसे प्रतिक्रमणसहित पंचमहाव्रतरूप-परम्परा अंगीकार की।
यह है, अथ से इति तक उदक निर्ग्रन्थ के हृदय-परिवर्तन की कहानी ! जिससे नालन्दीय अध्ययन का सारा चित्रण समझ में आ जाता है।
सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का सप्तम नालन्दीय अध्ययन अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ।
॥ सूत्रकृतांग सूत्र का द्वितीय श्रुतस्कन्ध समाप्त ॥
॥ सूत्रकृतांगसूत्र सम्पूर्ण ।
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