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सूत्रकृतांग सूत्र
___ तात्पर्य यह है कि प्रत्याख्यान का सम्बन्ध प्रत्याख्यान करने वाले तथा प्रत्याख्यान किये जाने वाले प्राणी के पर्याय के साथ होता है, उसके द्रव्यरूप जीव के साथ नहीं होता । जो व्यक्ति दीक्षा धारण करके साधु पर्याय में रहता है, उसके समस्त जीवों की हिंसा की प्रत्याख्यान होता है, किन्तु जो दीक्षा छोड़कर पुनः गृहस्थ हो जाता है, यानी गृहस्थ पर्याय में आ जाता है, तब उसका समस्त जीवों का हिंसा का प्रत्याख्यान नहीं रहता। साधुत्व की पर्याय में पूर्वोक्त प्रत्याख्यान के साथ सम्बन्ध रहने से वह अपने व्रत (प्रतिज्ञा) में जरा भी दोष लगाता है, तो उसकी शुद्धि के लिए उसे प्रायश्चित्त लेना पड़ता है, परन्तु जब गृहस्थ पर्याय में था, या अशुभ कर्मोदयवश साधुत्व का त्याग करके पुनः गृहस्थ पर्याय में आ जाता है तो उस समय इस प्रत्याख्यान के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहता । वास्तव में जीव एक ही है, किन्तु उसके पर्याय एक नहीं होते । गृहस्थ जीवन और साधु-जीवन के पर्याय भिन्न-भिन्न होते हैं। यही कारण है कि जैसे साधुत्व के पर्याय में किये हुए प्रत्याख्यान के साथ गुहस्थ पर्याय का कोई सम्बन्ध नहीं रहता, वैसे ही त्रसपर्याय को न मारने के किये हुए प्रत्याख्यान का त्रसपर्याय को छोड़कर स्थावरपर्याय में आए हुए प्राणी के साथ कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता।
इसी बात को श्री गौतम स्वामी दूसरा दृष्टान्त देकर उदक आदि निर्ग्रन्थों को समझाते हैं कि मैं निर्ग्रन्थों से पूछता हूँ कि आयुष्मन् निर्ग्रन्थो ! कोई परिव्राजक या परिवाजिका आश्रम या मठ (तीर्थस्थान) में स्थित साधु के पास धर्म-श्रवणार्थ आ सकते हैं ?
निर्ग्रन्थ-हाँ, आ सकते हैं। गौतम स्वामी- उन्हें धर्मोपदेश देना चाहिए या नहीं ? निर्ग्रन्थ --- हाँ, अवश्य ही उन्हें धर्मोपदेश देना चाहिए ।
गौतम स्वामी-यदि धर्मोपदेश सुनने के पश्चात् उनकी संसार से विरक्ति हो जाए और वे घरवार छोड़कर अगार धर्म से अनगार धर्म में दीक्षित होना चाहें तो उन्हें दीक्षा देकर साधुधर्म में उपस्थापित करना चाहिए या नहीं ?
निर्ग्रन्थ -कर लेना चाहिए।
गौतम स्वामी-यदि वे विरक्त होकर दीक्षा ले लें तो उनके साथ साधु सांभोगिक' व्यवहार कर सकते हैं ?
निर्ग्रन्थ-अवश्य कर सकते हैं ।
गौतम स्वामी-क्या इस प्रकार के साधु ५-१० वर्ष साधु पर्याय में रहकर पुनः गृहस्थ अवस्था में जाने सम्भव हैं ? .
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१. समान समाचारी वाले साधु-साध्वियों का वन्दन, आसनप्रदान, भोजनादि के
आदान-प्रदान सम्बन्धी व्यवहार को 'संभोग' या 'सांभोगिक व्यवहार' कहते हैं ।
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