________________
४३२
सूत्रकृतांग सूत्र
को प्राप्त करके असुरसंज्ञक निकाय में किल्विषी देव के रूप में उत्पन्न होते हैं। (तओ विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलभुयत्ताए तमोरूवत्ताए पच्चायंति) वे वहाँ से शरीर छोड़ कर पुनः बकरे की तरह गूंगे तथा तामसी योनि में जन्म लेते हैं। (ते पाणा वि बुच्चंति जाव णो णेयाउए भवइ) वे प्राणी भी कहलाते हैं, बस भी कहलाते हैं। इसलिए श्रमणोपासक को स जीव को न मारने का प्रत्याख्यान निविषयक है, यह कहना न्याययुक्त नहीं है।
(भगवं च णं उदाह) भगवान् श्री गौतम ने पुन: कहा-(संतेगइया पाणा दीहाउमा, जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ) इस संसार में बहुत-से प्राणी दीर्घायु (चिरकाल तक जीने वाले) होते हैं, जिनके विषय में श्रमणोपासक व्रत ग्रहण से लेकर मृत्युपर्यन्त दण्ड(हिंसा) का प्रत्याख्यान (त्याग) करता है। (ते पुवामेव कालं करेंति करेत्ता पारलोइयत्ताए पच्चायति) उन प्राणियों की मृत्यु पहले ही हो जाती है और वे यहाँ से मृत्यु प्राप्त करके परलोक में जाते हैं। (ते पाणा वि बुच्चंति, ते तसा वि वच्चंति ते महाकाया दीहाउया ते चिरद्विइया) वे प्राणी भी कहलाते हैं, त्रस भी कहलाते हैं, वे महाकाय और चिरस्थितिक (दीर्घायु) होते हैं। (ते बहुयरगा पाणा) वे प्राणी संख्या में बहुत होते हैं । (जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ) इसलिए श्रमणोपासक का व्रत प्रत्याख्यान इन प्राणियों की अपेक्षा से सुप्रत्याख्यान होता है । (जाव णो णयाउए भवइ) अतः श्रावक के त्रस हिंसा-प्रत्याख्यान को निविषय बताना न्यायोचित नहीं है।
(भगवं च णं उदाह) भगवान् गौतम स्वामी ने फिर कहा--(संतेगइया पाणा समाउया) इस जगत् में बहुत-से प्राणी समायुष्क होते हैं (जेहि समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ) श्रमणोपासक ने व्रत ग्रहण करने के दिन से लेकर मृत्युपर्यन्त जिनके वध (दण्ड) का त्याग (प्रत्याख्यान) किया है । (ते सयमेव कालं करेंति करित्ता पारलोइयत्ताए पच्चायंति) वे प्राणी अपने आप ही अपनी मृत्यु से मरते हैं और मरकर परलोक में जाते हैं । (ते पाणा वि वुच्चंति तसा वि वुच्चंति) वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं । (ते महाकाया, ते समाउया ते बहुयरगा) वे प्राणी विशालकाय, समान आयु वाले तथा संख्या में बहुत हैं, (जेहि समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ, जाव णो णेयाउए भवइ) इन प्राणियों के विषय में श्रमणोपासक का अहिंसाविषयक प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान (सविषयक) होता है, इसलिए श्रमणोपासक के प्रत्याख्यान को निविषयक बताना न्याययुक्त नहीं है ।
(भगदं च णं उदाह) भगवान् गौतम ने कहा--(संतेगइया पाणा अप्पाउया) इस विश्व में बहुत से प्राणी ऐसे भी हैं, जो अल्पायु होते हैं। (जेहिं समणोवागस्स आयाणसो आमरणंताए जाव दंडे णिक्खित्ते भवइ) जिनको श्रमणोपासक व्रतग्रहण करने के दिन से लेकर मृत्युपर्यन्त दण्ड देने (मारने) का त्याग (प्रत्याख्यान) करता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org