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सूत्रकृतांग सूत्र है। ऐसी दशा में आप या दूसरे लोग, जो यह कहते हैं कि ऐसा एक भी पर्याय नहीं है, जिसके लिए श्रमणोपासकों का यथार्थ प्रत्याख्यान हो सके । (अयंपि भेद से णो याउए भवइ) अत: आपका यह भेदात्मक कथन न्यासंगत नहीं है ।
व्याख्या अटपटो शंका, स्पष्ट समाधान
___ अब उदकपेढालपुत्र ने गौतमस्वामी के समक्ष अपनी शंका दूसरी तरह से प्रस्तुत को-~-आयुष्मान गौतम ! मेरी दृष्टि से जीव का ऐसा एक भी पर्याय नहीं है, जिसकी हिंसा का त्याग श्रमणोपासक कर सकता हो। इसका कारण यह है कि संसार के समस्त प्राणियों के पाय परिवर्तनशील हैं। वे सदा एक ही काय में नहीं रहते। स्थावर पाणी भरकर वस हो जाते हैं और त्रस मरकर स्थावर हो जाते हैं । अत: जब सब के सब बस प्राणी त्रस पर्याय को छोड़कर स्थावरकाय में उत्पन्न हो जाते हैं। उस समय एक भी त्रस जीव नहीं रहता, जिसके धात के त्याग का पालन श्रावक कर सके । अतः श्रावक का व्रत उस जैसे किसी ने ऐसा व्रत लिया कि "मैं नगरवासी मनुष्य को नहीं मारूंगा" कदाचित् दैवयोग से, वह नगर सारा उजड़ गया और सभी नगरवासी जगर छोड़कर वनवासी हो गये, तो ऐसी स्थिति में जैसे नगनिवासी को मारने की प्रतिज्ञा करने वाले उसे व्यक्ति की प्रतिज्ञा भी निविषय हो जाती है, उसी तरह बस को न मारने की प्रतिज्ञा करने वाले श्रावक की प्रतिज्ञा भी जब त्रस प्राणी सब के सब स्थावर हो जाते हैं, तब निविषय हो जाती है, इसका क्या समाधान है, आपके पास ? यानी वह प्रतिज्ञा प्रयोजनहीन हो जाती है, इसलिए वह प्रतिज्ञा निरर्थक है।
उदक निर्गन्ध की इस अटपटी शंका का समाधान करते हुए गौतम स्वामी ने कहा-"उदकपेढालपुत्र! हमारी मान्यता का अनुसरण किया जाय तो यह प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। क्योंकि हमारा सिद्धान्त यह है कि सबके सब बस एक ही काल में स्थावर हो जाते हैं ऐसा न कभी हुआ है, न होगा और न है । लेकिन थोड़ी देर के लिए आपके सिद्धान्तानुसार अगर ऐसा मान भी लें तो श्रावक का व्रत निविषय नहीं हो सकता, क्योंकि आपके मतानुसार सबके सब स्थावर प्राणी भी तो किसी भी समय त्रस हो जाते हैं, उस समय श्रावकों के त्रसहिंसा-त्याग का विषय तो अत्यन्त बढ़ जाता है। उस समय श्रावक का अहिंसाविषयक प्रत्याख्यान सर्वप्राणी-विषयक हो जाता है । अतः आप लोग जो श्रावकों के व्रत को निविषय कहते हैं, यह न्यायसंगत नहीं है।
श्रावक का प्रत्याख्यान सर्वप्राणीविषयक क्यों हो जाता है ? इसका कारण भी सुन लो । जैसे सभी त्रस प्राणी स्थावररूप में उत्पन्न हो जाते हैं, वैसे ही सब स्थावर प्राणी भी त्रसरूप में उत्पन्न हो जाते हैं। जब सभी जीव त्रसकाय के रूप में उत्पन्न हो जाते हैं तब वह स्थान श्रावक के लिए अहिंसा-पालन योग्य हो जाता है ।
इस प्रकार ऐसे प्राणी बहुत-से हैं, जिनके विषय में श्रमणोपासक का त्याग
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