Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
एक भी अशील ब्राह्मण को भोजन कराने से जब नरक होता है, तब फिर ऐसे दो हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से तो कहना ही क्या है ? मूल में मांसाहार आदि हिसाजनित भोजन करना-कराना नरक-गमन का ही कारण होता है ।
दूसरी बात यह है कि ब्राह्मणों को जाति का बड़ा भारी अभिमान होता है, जबकि जन्म (जाति) कर्मवश प्राप्त होता है, वह नित्य नहीं है । इसलिए बुद्धिमान पुरुष जाति का मद नहीं करते । कई लोग तो यहाँ तक डींग हाँका करते हैं कि "ब्राह्मण तो ब्रह्माजी के मुख से पैदा हुए हैं, क्षत्रिय भुजा से, वैश्य उदर या उरु से
और शूद्र पैरों से पैदा हुए हैं।"१ परन्तु यह बात सत्य से कोसों दूर है, क्योंकि ऐसा मानने पर तो वर्गों में कोई अन्तर नहीं होना चाहिए । चारों वर्ण ब्रह्मा से उत्पन्न होने के कारण एक समान होने चाहिए, परन्तु ब्राह्मणों को चारों वर्गों को समान मानना अभीष्ट नहीं है। फिर ब्रह्मा के मुख आदि से चारों वर्गों की उत्पत्ति होती न तो आज दिखाई देती है और न पहले ही देखी गई है। यह कपोलकल्पना है, युक्तिरहित होने से यह बात प्रमाण नहीं है। फिर जाति तो अनित्य है, यह ब्राह्मण धर्म की भी मान्यता है। जैसे कि कहा है
"शृगालो वै एष जायते यः सपुरीषो दह्यते।" -जिसके शरीर में विष्टा लगी हुई है, वह मृत व्यक्ति यदि विष्ठासहित जलाया जाता है तो वह अवश्य ही सियार होता है। यानी गीदड़ की योनि में जन्म लेता है।
सद्यः पतति मांसेन लाक्षया लवण न च ।
त्र्यहेन शूद्री भवति ब्राह्मणः क्षीरविक्रयी ॥ जो ब्राह्मण मांस, चमड़ा या लाख एवं नमक बेचता है, वह शीघ्र ही पतित हो जाता है । दूध बेचने वाला तो तीन ही दिन में शूद्र हो जाता है।
इत्यादि वाक्यों में जातिभ्रष्ट होना जाति की अनित्यता को सूचित करता है । इसी प्रकार तमाम जातियों का परलोक में भ्रष्ट या नष्ट होना ब्राह्मण धर्म में भी कहा है। जैसा कि उनके धर्मग्रन्थ में कहा है
कायिकैः कर्मणां दोषैः याति स्थावरतां नरः ।
वाचिकैः पक्षिमृगतां मानसरन्त्यजातिताम् ॥ कायिक कर्मों के दोष से यानी शरीर द्वारा किये गए पापकर्मों से जीव स्थावर योनि को प्राप्त करता है और जो वाणी से पाप करता है, वह पक्षी तथा मृग आदि होता है तथा जो मानसिक पाप करता है, वह चाण्डाल (अन्त्यज) जाति में जन्म लेता है । अतः जाति अनित्य है, यह निश्चित है। फिर जो मनुष्य इस अनित्य
१. ब्राह्मणोस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ।
उरुभ्यां वैश्यो जातः पद्भ्यां शूद्रोऽजायत ।
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