Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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छठा अध्ययन : आर्द्रकीय
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दूसरे की रक्षा करता है । ( महाभवोघं समुद्द तरिउं आयाणवं धम्ममुदाहरेज्जा ) महादुस्तर संसार समुद्र को पार करने के लिए विवेकी साधक को सम्यग्दर्शन- ज्ञानचारित्ररूप धर्म का निरूपण और ग्रहण करना चाहिए ।
व्याख्या
सद्धर्म को अंगीकार करने वाले वाता का जीवन
इस गाथा में इस अध्ययन का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार पूर्वोक्त संवादों के सन्दर्भ में सद्धर्म को अंगीकार करने वाले त्राता साधक के जीवन की संक्षिप्त झाँकी दे रहे हैं । जो पुरुष सर्वज्ञ भगवान महावीर की आज्ञा से इस सद्धर्म का स्वीकार करके मन-वचन-काया से इसका भली-भाँति पालन करता है तथा समस्त मिथ्यादर्शनों की तीन करण से उपेक्षा करता है, वही इस संसार से अपनी और दूसरों की रक्षा करता है । वही केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष का अधिकारी होता है । इस दुस्तर संसार सागर को पार करने का एकमात्र उपाय सम्यग्दर्शन - ज्ञान चारित्र ही है । जो इनको धारणपालन करता है, वही सुसाधु है, वह आर्द्रक मुनि की तरह अपने सम्यग्दर्शन के प्रभाव से परतीर्थिकों के आडम्बर एवं वाग्जाल में नहीं फँसता, स्वमार्ग या दर्शन से भ्रष्ट लोगों को पदार्थ के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान कराता है । सम्यक्चारित्र के प्रभाव से वह सकल जीवों का हितैषी होकर अपने आस्रवद्वारों को रोक देता है, तथा वह अपने विशिष्ट तप के प्रभाव से अनेक जन्मों के संचित कर्मों को नष्ट कर देता है । अतः ऐसे धर्म को विद्वान् साधक स्वयं ग्रहण करते हैं और दूसरों को भी इसे ग्रहण करने का उपदेश देते हैं ।
इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध का छठा आर्द्रकीय अध्ययन अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ ।
|| आर्द्रकीय नामक छठा अध्ययन समाप्त ॥
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