________________
३६३
सप्तम अध्ययन : नालन्दीय
संस्कृत छाया तस्य खलू लेपस्य गाथापते नालन्दायाः बाह्यायाः उत्तरपूर्वस्यां दिशिभागे शेषद्रव्या नामोदकशाला आसीत्, अनेकस्तम्भशतसन्निविष्टा प्रासादिका यावत् प्रतिरूपा। तस्याः खलु शेषद्रव्यायाः उदकशालायाः उत्तरपूर्वस्यां दिग्भागे हस्तियामनामा वनखण्डः आसीत् । कृष्णो वर्णकवनखण्डस्य ।।सू०७०।।
___ अन्वयार्थ (तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स नालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं सेसदविया नाम उदगसाला होत्था) उस युग में उस लेप नामक गृहपति (गृहस्थ) की शेषद्रव्या नामक एक जल-शाला थी, जो नालन्दा से बाहर उत्तरपूर्व दिशा में स्थित थी। (अणेग खंभसयसन्निविट्ठा पासादीया जाव पडिरूवा) वह उदकशाला अनेक प्रकार से सैकड़ों खम्भों के आधार पर टिकी हुई थी, तथा वह अत्यन्त मनोहर, चित्त को प्रसन्न करने वाली तथा बड़ी सुन्दर थी। (तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं हथिजामे नाम वणसंडे होत्था) उस शेषद्रव्या नामक उदकशाला के उत्तरपूर्व दिविभाग में (दिशा में) हस्तियाम नाम का एक वनखण्ड था । (किण्हे वण्णओ वणसंडस्स) वह वनखण्ड श्मामवर्ण का था। इसका शेष वर्णन उववाई सूत्र में किये हुए वनखण्ड के वर्णन के समान जान लेना चाहिए।
सारांश नालन्दा के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में लेप नामक गृहपति के द्वारा अपने आवासभवन के निर्माण के बाद बची हई सामग्री से बनवाई हई एक उदकशाला (प्याऊ) थी, जो अनेक प्रकार के सैकड़ों खंभों पर टिकी हुई, बहुत ही सुन्दर और रमणीय थी । लेप गृहपति ने उसका नाम शेषद्रव्या रखा था। उस उदकशाला के ईशानकोण में हस्तियाम नामक एक विशाल वनखण्ड था, जो अनेक वृक्षों के कारण हराभरा और सब ऋतुओं में सुहावना था।
उदकशाला और वनखण्ड का परिचय यहाँ इसलिए दिया गया है कि आगे जो धर्मचर्चा हुई है, उसका स्थल वनखण्ड ही रहा है, जो शेषद्रव्या उदकशाला के अतिनिकट था ।
मूल पाठ तस्सि च णं गिहपदेसंमि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे आरामंसि । अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे नियंठे मेयज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता भगवं गोयम एवं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org