Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 437
________________ ३६६ सूत्रकृतांग सूत्र पुत्र ने भगवान् गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा --(आउसो गोयमा ! अत्थि कुमारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुम्हाणं पवयगं पवयमाणा) आयुष्मन् गौतम ! कुमारपुत्र नामक श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, जो आपके प्रवचन का उपदेश देते हैं--प्ररूपणा करते हैं। (समणोवासगं गाहावई उवसंपन्नं एवं पच्चक्खाति) जब कोई गृहस्थ श्रमणोपासक उनके समीप प्रत्याख्यान (नियम) ग्रहण करने के लिए पहुंचता है तो वे उसे इस प्रकार प्रत्याख्यान कराते हैं - (अभिओएणं गाहावइचोरगहणविमोक्खणयाए णण्णत्थ तसेहि पाणेहि णिहाय दंड) राजा आदि के अभियोग (बलात्कार) के सिवाय गाथापति-चोरविमोक्षणन्याय से त्रस जीवों के दंड देने घात (हिंसा) का त्याग करता है, (एवं ण्हं पच्चक्खंताणं दुपच्चखायं भवइ) परन्तु जो लोग इस प्रकार से प्रत्याख्यान स्वीकार करते हैं, उनका प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान (खोटा प्रत्याख्यान) है। एवं ण्हं पच्चक्खावेमाणाणं दुपच्चक्खावियव्वं भवइ) तथा इस रीति से जो प्रत्याख्यान कराते हैं, वे भी दुष्प्रत्याख्यान कराते हैं । (एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अतियरंति सयं पतिण्णं) क्योंकि इस प्रकार से दूसरे को प्रत्याख्यान कराने वाले साधक अपनी प्रतिज्ञा का उल्लंघन करते हैं । (कस्त णं तं हेउ ?) प्रतिज्ञा भंग किस कारण से हो जाता है ? (संसारिया खल पाणा) कारण यह है कि सभी प्राणी संसरणशील-परिवर्तनशील हैं । (थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायति) इसलिए इस समय जो स्थावर प्राणी हैं, वे कभी त्रसरूप में उत्पन्न हो जाते हैं (तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति) तथा इस समय जो त्रसप्राणी हैं, वे कर्मोदयवश समय पाकर स्थावर रूप में आ जाते हैं । (थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जति, तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववति ) अनेक जीव स्थावरकाय से छूटकर त्रसकाय में उत्पन्न होते हैं, और त्रसकाय से छूटकर स्थावरकाय में उत्पन्न हो जाते हैं। (तेसि च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्त) वे त्रस प्राणी जब स्थावरकाय में उत्पन्न हो जाते हैं, तब वे उन त्रस काय के जीवों को दण्ड न देने की प्रतिज्ञा लिए हुए पुरुषों द्वारा घात करने के योग्य हो जाते हैं। व्याख्या प्रत्याख्यानप्रतिज्ञाभंग : एक शंका इस सूत्र में उदकपेढालपुत्र निर्ग्रन्थ द्वारा गौतम स्वामी के समक्ष प्रत्याख्यान की प्रतिज्ञा भंग होने की शंका प्रस्तुत की गई है। उदकपेढालपुत्र की शका इस प्रकार है-आयुष्मन् गौतम ! आपके अनुयायी कुमारपुत्र श्रमण निर्ग्रन्थ अपने पास आए हुए श्रमणोपासक गृहस्थ को जिस पद्धति से प्रत्याख्यान कराते हैं, वह ठीक नहीं है । क्योंकि उस पद्धति से प्रतिज्ञा का पालन नहीं हो सकता, अपितु प्रतिज्ञाभंग होता है । जैसे कि जब उनके पास कोई श्रद्धालु गृहस्थ प्रत्याख्यान करने की इच्छा प्रकट करता है, तब वे उसे इस प्रकार प्रत्याख्यान कराते हैं-"राजा आदि के अभियोग को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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