Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 436
________________ सप्तम अध्ययन : नालन्दीय ३६५ कहा- "आयुष्मन् ! गौतम मुझे आपसे कुछ बातों पर प्रश्न पूछना है, उसका उत्तर भगवान महावीर से जैसा आपने सुना है, जैसा विचार किया है, वह मुझसे वाद (युक्ति) पूर्वक कहिए।" गौतम स्वामी ने उदकपेढालपुत्र से यों कहा-"आयुष्मन् ! आप अपना प्रश्न प्रस्तुत कीजिए, उसे सुन-समझकर जैसी भी मेरी भी जानकारी है, तदनुसार युक्तिपूर्वक उसका उत्तर दूंगा।" इस प्रकार श्री उदकपेढालपुत्र ने जो प्रश्न प्रस्तुत किया, उसे अगले सूत्र में कहते हैं मूल पाठ सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी-आउसो गोयमा ! अत्थि खलु कुमारपुत्तिया नाम समणा निग्गंथा तुम्हाणं पवयणं पवयमाणा गाहावई समणोवासगं उवसंपन्न एवं पच्चक्खावेति-णण्णत्थ अभिओएणं गाहावइचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसेहि पाहि णिहाय दंडं, एवं ण्हं परचक्खंताणं दुपच्चक्खायं भवइ, एवं ण्हं पच्चक्खावेमाणाणं दुपच्चक्खावियव्वं भवइ, एवं ते परं पच्चक्खावेमाणा अतियरंति सयं पतिणं, कस्स णं तं हे ? संसारिया खलु पाणा थावरावि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववजंति, तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववज्जंति, तेसि च णं थावरकायंसि उचगाणं ठाणने घतं ।। स० ७२ ॥ संस्कृत छाया | सवादमुदक: पेढालपुत्रो भगवन्तं गौतममेवमवादीत्-आयुष्मन गौतम !सन्ति खलु कुमारपुत्राः नाम श्रमणाः निर्ग्रन्थाः युष्माकं प्रवचनं प्रवदन्तः गाथापति श्रमणोपासकमुपसन्नमेवं प्रत्याख्यापयन्ति नान्यत्राभियोगेन गाथापतिचोरग्रहणविमोक्षणेन बसेषु प्राणेषु निधाय दण्डमेवं प्रत्याख्यायतां दुष्प्रत्याख्यानं भवति, एवं प्रत्याख्यापयतां दुष्प्रत्याख्यापयितव्यं भवति । एवं ते परं प्रत्याख्यापयन्तोऽतिचरन्ति स्वां प्रतिज्ञाम् । कस्य हेतोः ? संसारिणः खलु प्राणाः स्थावरा अपि प्राणाः त्रसत्वाय प्रत्यायान्ति, वसा अपि प्राणाः स्थावरत्वाय प्रत्यायान्ति, स्थावरकायाद् विप्रमुच्यमानाः त्रसकायेषु उत्पद्यन्ते त्रसकायाद् विप्रमुच्यमानाः स्थावरकायेषु उत्पद्यन्ते, तेषां च खलु स्थावरकायेषुत्पन्नानां स्थानमेतद् घात्यम् ॥सू० ७२॥ अन्वयार्थ (सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयम एवं वयासी) वाद सहित उदकपेढाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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