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सूत्रकृतांग सूत्र या एकदण्डी), हस्तितापस आदि मिले । आर्द्र कमुनि के साथ इन सब भिक्षुओं आदि का जो वाद-विवाद हुआ, वही इस अध्ययन में वर्णित है।
इस अध्ययन की प्रारम्भिक पच्चीस गाथाओं में आर्द्र क मुनि का गोशालक के साथ वाद-विवाद है। इनमें गोशालक ने भगवान् महावीर की भरपेट निन्दा की है और बताया है कि वे पहले तो त्यागी थे, एकान्त में रहता थे और मौन रखते थे; लेकिन अब आराम से रहते हैं, सभा में बैठते हैं, मौन नहीं रखते । इस प्रकार के और भी आक्षेप गोशालक ने भ० महावीर पर लगाये हैं। आर्द्रक मुनि ने उन तमाम आक्षेपों का डटकर उत्तर दिया है । इस वाद-विवाद के मूल में कहीं भी गोशालक का नाम नहीं है । नियुक्तिकार एवं वृत्तिकार ने इसका सम्बन्ध गोशालक के साथ जोड़ा है। क्योंकि वाद-विवाद को पढ़ने से मालूम होता है कि पूर्वपक्षी महावीर से पूर्णतया परिचित होना चाहिए । यह व्यक्ति गोशालक के सिवाय और कोई नहीं हो सकता। इसलिए वाद-विवाद का सम्बन्ध गोशालक के साथ जोड़ा गया है, जो उचित ही है। आगे ४२वीं गाथा तक बौद्ध-भिक्षुओं के साथ वाद-विवाद का वर्णन है, इनमें 'बुद्ध' शब्द आया है, तथा बौद्ध-धर्म के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। इसके पश्चात् ५१वीं गाथा तक ब्रह्मवती (त्रिदण्डी या एकदण्डी) के साथ वाद-विवाद का वर्णन है । ये सभी वेदवादी हैं और आर्हतमत को वेदबाह्य होने से अग्राह्य मानते हैं । अन्त में हस्तितापसों के साथ विवाद का वर्णन है, जो अनेक छोटे जीवों को कई बार मारने के बजाय एक हाथी को मारकर वर्ष भर तक का भोजन चला लेते थे। प्रथम श्रु तस्कन्ध के सातवें कुशील अध्ययन में हस्तितापस सम्प्रदाय का समावेश असंयतियों में किया गया है।
___इस प्रकार आर्द्र कीय नामक इस अध्ययन में विविध साधकों के साथ आईक मुनि के हुए वाद-विवाद का रोचक वर्णन है।
उपर्युक्त परिचय के प्रकाश में आर्द्रकीय अध्ययन की क्रमप्राप्त गाथाएँ इस प्रकार हैं
मूल पाठ पुराकडं अद्द ! इमं सुणेह, मेगंतयारी समणे पुराऽऽसी। से भिक्खुणो उवणेत्ता अणेगे, आइक्खइ इण्हि पुढो वित्थरेणं ॥१॥ साऽऽजीविया पट्ठवियाऽत्थिरेणं, सभागओ गणओ भिक्खुमज्झे। आइक्खमाणो बहुजन्नमत्थं, न संधयाई अवरेण पुव्वं ॥२॥ एगंतमेवं अदुवा वि इण्हि दोऽवण्णमन्नं न समेति जम्हा। पुदिव च इहि च अणागयं वा, एगंतमेवं पडिसंधयाई ॥३॥ समिच्च लोगं तसथावराणं खेमंकरे, समणे माहणे वा। आइक्खमाणो वि सहस्समझे एगंतयं साहयई तहच्चे ॥४॥
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