Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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छठा अध्ययन : आर्द्र कीय
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अकेला विचरण करने वाला तपस्वी साधक है, उसे हमारे धर्म में पाप नहीं लगता ॥७॥
आर्द्रक मुनि कहते हैं-(सीओदगं बीयकायं आहायकम्मं तह इत्थियाओ एयाई जाणं पडिसेवमाणा अगारिणो अस्समणा भवंति) सचित्त जल, बीजकाय, आधाकर्मयुक्त आहार और स्त्रियाँ, इनका सेवन करने वाले गृहस्थ हैं, श्रमण नहीं ॥८॥
(सिया य बीओदग इत्थियाओ पडिसेवमाणा समणा भवंतु) यदि बीजकाय (बीज वाली हरी सचित्त वनस्पति) कच्चा (सचित्त) जल, एवं कामिनियों का सेवन करने वाले पुरुष भी श्रमण हों, (अगारिणो वि समणा भवंतु तेऽवि उ तहप्पगार सेवंति) तो गृहस्थ भी श्रमण क्यों नहीं माने जाएँगे ? क्योंकि वे भी पूर्वोक्त विषयों का सेवन करते हैं ।।
(जे यावि भिक्ख बीओदग भोइत्ति जीवियट्टी भिक्खं विहं जायंति) जो पुरुष भिक्षु होकर भी सचित्त बीजकाय, कच्चा जल और आधाकर्मदोषयुक्त आहारादि का उपभोग करते हैं, वे जीवन जीने से लिए ही भिक्षावृत्ति करते हैं। (ते पाइसंजोगमविप्पहाय) वे अपने ज्ञातिजनों (परिवार) का संसर्ग छोड़कर भी (कायोवगा) अपनी काया (देह) का ही पोषण करते हैं, शरीर के ही उपकार में लगे हैं, णंतकरा भवंति) वे अपने कर्मों का नाश करने या जन्म-मरणरूप संसार का अन्त करने वाले नहीं हैं ॥१०॥
व्याख्या
गोशालक के भोगवादी धर्म का आईक मुनि द्वारा प्रतिवाद इन चार गाथाओं में से सातवीं गाथा में गोशालक द्वारा अपने सुविधावादी भौतिक भोगपरायण धर्म के माहात्म्य का मण्डन अंकित किया गया है, जिसका प्रतिवाद आठवीं, नौवीं और दसवीं गाथाओं में आई कमुनि द्वारा किया गया है।
गोशालक अपने धर्म की महत्ता और आकर्षकता बताने के लिए कहता हैआर्द्रक ! तुमने अपने धर्म की बात कही, पर तुम्हारे धर्म में आम जनता का कोई आकर्षण नहीं, क्योंकि उसमें पद-पद पर प्रतिबन्ध लगाया गया है, यह मत खाओ, वह मत पीओ, उससे संसर्ग मत करो इत्यादि रूप से अनेक सुख-सुविधाओं पर उसमें रोक लगा दी गई है, पर हमारे धर्म में ऐसा कुछ भी प्रतिबन्ध नहीं है। जो साधक अकेला निर्द्वन्द्व होकर विचरण करता है, तपस्वी है, वह चाहे कच्चा पानी पीए, चाहे जिस बीजकाय (सचित्त वनस्पति) का सेवन करे, चाहे स्त्रियों का संसर्ग एवं सेवन करे, उसे किसी प्रकार का पाप-दोष नहीं लगता।
इस भोगवादी धर्मसिद्धान्त का प्रतिवाद करते हुए आर्द्र कमुनि कहते हैंवाह रे गोशालक ! तुम्हारे श्रमणों के ये लक्षण तो कुछ भी समझ में नहीं आए । क्योंकि सचित्त जल, सचित्त वनस्पति और कामिनियों का सेवन तो गहस्थ भी करते हैं, और वे कुछ तप भी करते हैं, अकेले भी घूमते हैं, फिर गृहस्थ में और तुम्हारे
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