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छठा अध्ययन : आर्द्र कीय
३५७ क्या है ? (पसिणं वियागरेज्जा नवावि) भगवान् प्रश्न का उत्तर देते हैं और नहीं भी देते । (सकाम किच्चेणिह आरियाणं) वे इस जगत् में आर्य लोगों के लिए तथा अपने तीर्थंकर-नामकर्म के क्षय के लिए धर्मोपदेश करते हैं ॥१७॥
(आसपन्ने तत्था गंता अदुवा अगंता समिया वियागरेज्जा) सर्वज्ञ भगवान् महावीर सुनने वालों के पास जाकर अथवा न जाकर समान भाव से धर्मोपदेश देते हैं (अणारिया दसणओ परित्ता इति संकमाणो तत्थ ण उवेति) परन्तु अनार्य लोग दर्शन से भ्रष्ट होते हैं, इस आशंका से भगवान् उनके पास नहीं जाते हैं ॥१८॥
व्याख्या
डरपोक होने के आक्षेप का उत्तर पन्द्रहवीं गाथा से लेकर १८वीं गाथा तक में गोशालक द्वारा भगवान महावीर पर किये हुए डरपोक होने के आक्षेप का आर्द्र क मुनि द्वारा दिये गये उत्तर अंकित हैं।
आर्द्रक मुनि के पूर्वोक्त कथनों से निरुत्तर हुआ गोशालक पुनः अन्य प्रकार से भगवान महावीर पर आक्षेप करता हुआ कहता है-आर्द्रक ! मालूम होता है, तुम्हारे श्रमण महावीर स्वामी सच्चे साधु नहीं है, अपितु राग-द्वष और भय से भरे हुए दाम्भिक हैं । जहाँ बहुत से आए-गए लोग ठहरते हैं, उस स्थान में तथा बगीचे आदि में बने हुए स्थानों में वे नहीं ठहरते । वे समझते हैं कि इन स्थानों में बहुत से बड़ेबड़े धर्म के ज्ञाता, बड़े-बड़े प्रमाणनिपुण तांत्रिक और शास्त्र के ज्ञाता, व्रतों के ग्रहणधारण करने में मेधावी, औत्पातिकी आदि बुद्धियों से युक्त, वक्ता, जाति आदि में श्रेष्ठ, योगसिद्धि एवं औषधिसिद्धि आदि के ज्ञाता होते हैं । वे अन्यतीर्थी बड़े मेधावी और आचार्य के पास रहकर शिक्षा पाये हुए होते हैं, वे सूत्र और अर्थ के धुरन्धर विद्वान् और बुद्धिमान होते हैं । अतः वे यदि मुझसे कुछ पूछ बैठेंगे तो मैं उनका उत्तर नहीं दे सकूँगा, अतः वहाँ जाना ही ठीक नहीं है। यह सोचकर तुम्हारे महावीर स्वामी अन्यतीथियों के डर से उक्त स्थानों में नहीं ठहरते । अतः अन्यतीथियों से डरने वाले महावीर स्वामी डरपोक हैं । तथा सब में उनकी समदृष्टि नहीं है। इसलिए वे रागद्वष से युक्त हैं । यदि यह बात न होती तो वे अनार्य देश में जाकर अनार्यों को धर्मोपदेश क्यों नहीं देते ? तथा आर्य देश में भी सर्वत्र न जाकर कतिपय स्थानों में ही क्यों जाते हैं ? अतः वे समदृष्टि वाले नहीं, अपितु विषमदृष्टि होने के कारण रागद्वेष से युक्त हैं।
इस प्रकार गोशालक के द्वारा किये हुए आक्षेपों का समाधान करते हुए आर्द्रक मुनि कहते हैं-गोशालकजी ! भगवान् महावीर स्वामी डरपोक और विषमदृष्टि नहीं हैं। किन्तु वे निष्प्रयोजन कोई भी कार्य नहीं करते, और न ही बिना विचारे किसी प्रकार की बालचेष्टा करते हैं । वे सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी हैं, वे सदा दूसरे प्राणियों के हित में तत्पर रहते हैं, इसलिए जिससे दूसरे का उपकार होता दिखता है, वही
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