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तृतीय अध्ययन : आहार-परिज्ञा
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यहाँ तक वनस्पतिकायिक जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि एवं आहार आदि का निरूपण किया गया है।
__सारांश इस अध्ययन के प्रारम्भ के ४३वे सूत्र से लेकर ५०वें सूत्र तक शास्त्रकार ने निम्नोक्त वनस्पतिकायिक जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और रचना तथा उनके आहार-ग्रहण का वर्णन किया है
(१) बीजकाय नामक वनस्पतिकाय पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले वृक्षों के आहारादि का निरूपण ।
(२) वृक्ष में उत्पन्न होने वाले वृक्षयोनिक वृक्षों के आहारादि का निरूपण ।
(३) वृक्षयोनिक वृक्ष में ही उत्पन्न होने वाले वृक्षों के आहार आदि का विश्लेषण ।
(४) वृक्षयोनिक वृक्षों के मूल से लेकर बीज तक के आहार आदि का विश्लेषण ।
(५) वृक्षयोनिक वृक्षों में उत्पन्न होने वाले अध्यारुह नामक वृक्ष के आहारादि के सम्बन्ध में विवेचन।
(६) अध्यारुह वृक्षों में उत्पन्न होने वाले अध्यारह नामक वृक्षों के आहारादि का वर्णन ।
(७) उन अध्यारुह वृक्षों में उत्पन्न होने वाले अध्यारुह वृक्षों में भी उत्पन्न अध्यारुह वृक्षों के आहारादिक का निरूपण ।
(८) उन अध्यारुह वृक्षों में ही उनके अवयव रूप में उत्पन्न होने वाले मूल, कन्द, स्कन्ध, पत्र, शाखा, प्रवाल, साल, पुष्प, फल, बीज-रूप अवयवों के आहार आदि का निरूपण ।
इसी प्रकार समस्त वनस्पतिकायिक जीवों के सम्बन्ध में विश्लेषण समझ लेना चाहिए।
मूल पाठ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता पुढविजोणिया पुढविसंभवा जाव णाणाविहजोगियासु पुढवीसु तणत्ताए विउझेति । ते जीवा तेसि णाणाविहजोणियाणं पुढवीणं सिणेहमाहारति जाव ते जीवा कम्मोववनगा भवंतीतिमक्खायं ॥ सू० ५१॥
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