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पंचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्रुत
सारांश
तीर्थंकर और भव्यजीवों का उच्छेद हो जायेगा अर्थात् कर्मबन्धन से रहित होकर मोक्ष में चले जायेंगे, अथवा तीर्थंकर और भव्यजीव सदैव ही रहेंगे, अर्थात् वे मोक्ष प्राप्त नहीं करेंगे। ऐसा एकान्त कथन नहीं करना चाहिए। इन दोनों एकान्त नित्य और अनित्य पक्षों से शास्त्रीय या लौकिक व्यवहार सम्भव नहीं है । इसलिए इन दोनों एकान्त पक्षों को अनाचार जानना चाहिए ।
मूल पाठ
जे के खुद्दगा पाणा, अदुवा सन्ति महालया ।
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सरिसं तेहि वेरंति असरिसंती य णो वए ॥६॥ एएहिं दोहि ठाणे एएहिं दोहि ठाणेहिं अणायारं तु जाणए ॥७॥ संस्कृत छाया
ववहारोण विज्जइ ।
ये केचित् क्षुद्रकाः प्राणाः, अथवा सन्ति महालयाः । सदृशं तेषां वैरमिति, असदृशमिति नो वदेत् || ६ || एताभ्यां द्वाभ्यां स्थानाभ्यां व्यवहारो न विद्यते । एताभ्यां द्वाभ्यां स्थानाभ्यां अनाचारं तु जानीयात् ॥ ७ ॥ अन्वयार्थ
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( जे केइ खुद्दगा पाणा ) इस जगत् में जो एकेन्द्रिय आदि क्षुद्र प्राणी हैं, (अदुवा महालया सन्ति) अथवा महाकाय हाथी, घोड़े आदि जीव हैं, (तेहि वेरं सरिसंति असरिसंति य णो वए) उन दोनों छोटे या बड़े प्राणियों की हिंसा से दोनों के साथ समान ही वैर होता है, अथवा समान वैर नहीं होता, यह नहीं कहना चाहिए || ६ || (एएहि दोहि ठाणे ) क्योंकि इन दोनों (समान ही वैर होता है, या समान वैर नहीं होता) एकान्तमय वचनों से (ववहारो ण विज्जइ) व्यवहार नहीं होता । (एएहि दोहि ठाणे अणायारं तु जाणए) इसलिए इन दोनों एकान्तमय कथनों को अनाचार - सेवन जानना चाहिए ॥ ७ ॥
व्याख्या
क्षुद्र और महाकाय प्राणी की हिंसा से समान या असमान वैरबन्ध नहीं इस जगत् में एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि जो क्षुद्र प्रणी हैं, तथा जो क्षुद्र (अल्प ) काय पंचेन्द्रिय ( तंदुल मत्स्य जैसे ) जीव हैं, एवं हाथी, घोड़े, मनुष्य आदि जो महाकाय पंचेन्द्रिय प्राणी हैं, उन सबका आत्मा समान प्रदेश वाला है, इसलिए इन अल्पकाय
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