Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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पंचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्र ुत
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होता । अतः एकान्तनित्य या एकान्तअनित्य इन दोनों पक्षों में से किसी भी एक पक्ष का स्वीकार करना अनाचार है । वीतराग सर्वज्ञ के प्रवचन से विरुद्ध है |
मूल पाठ समुच्छिहति सत्थारो, सव्वे पाणा अणेलिसा | गंठिगा वा भविस्संति, सासयंति व णो वए ॥ ४ ॥ एएहिं दोहि ठाणेह ववहारो ण विज्जइ । एएहि दोहि ठाणे अणायारं तु जाणए ॥५॥ संस्कृत छाया
समुत्छेत्स्यन्ति शास्तारः, सर्वे प्राणाः अनीदृशाः । ग्रन्थिका वा भविष्यन्ति, शाश्वता इति नो वदेत् ॥ ४ ॥ एताभ्यां द्वाभ्यां स्थानाभ्यां व्यवहारो न विद्यते । एताभ्यां द्वाभ्यां स्थानाभ्यामनाचारं तु जानीयात् ॥ ५ ॥ अन्वयार्थ
( सत्थारो समुच्छिहति) प्रशास्ता - शासनप्रवर्तक अनुशासक तीर्थंकर तथा उनके मत को जानने वाले सभी भव्यजीव उच्छेद को प्राप्त होंगे, अर्थात् कालक्रम से सभी मुक्ति प्राप्त कर लेंगे, सबके मुक्त हो जाने पर जगत् जीवों ( भव्यजीवों) से रहित हो जाएगा । अथवा (सव्वे पाणा अणेलिसा ) सभी औव परस्पर विसदृश ( एक सरीखे नहीं ) हैं (गंठिगा वा भविस्संति) अथवा सभी प्राणी कर्मबन्धनरूपी ग्रन्थि से बद्ध रहेंगे, (सासयंति व णो वए) अथवा सभी जीव शाश्वत - सदा स्थायी, एकरूप रहेंगे, अथवा तीर्थंकर सदैव शाश्वत ( स्थायी) रहेंगे, इत्यादि एकान्त वचन नहीं बोलने चाहिए ||४||
(एएहिं दोहि ठाणेहिं ववहारो ण विज्जइ) क्योंकि इन दोनों एकान्तमय पक्षों से शास्त्रीय या लौकिक व्यवहार नहीं होता । (एएहि दोहि ठाणेहिं अणायारं तु जाणए) अतः इन दोनों पक्षों के आश्रय-ग्रहण को अनाचार सेवन समझना चाहिए ||५||
व्याख्या
ये एकान्त वचन अव्यवहार्य एवं अनाचरणीय
इन दोनों गाथाओं में शास्त्रकार ने साधक को मोक्ष और संसार से सम्बन्धित बातों के विषय में एकान्त एकपक्षीय निर्णय देने का निषेध किया है, उसे अव्यवहार्य और अनाचरणीय बताया है ।
इस प्रकार के ऊटपटांग एकान्त विधान के कुछ नमूने ये हैं - ( १ ) तीर्थ के प्रवर्तक सर्वज्ञ तीर्थंकर और उनके शासन को मानने वाले भव्यजीव सबके सब एक
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