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सूत्रकृतांग सूत्र
अन्वयार्थ (लोए अलोए वा णत्थि) लोक या अलोक नहीं है, (णेवं सन्नं निवेसए) ऐसा ज्ञान नहीं रखना चाहिए । (लोए अलोए वा अस्थि एवं सन्न निवेसए) लोक या अलोक है, ऐसा ज्ञान रखना चाहिए।
व्याख्या
लोक-अलोक के अस्तित्व का यथार्थ ज्ञान
इस गाथा में शास्त्रकार ने लोक-अलोक के सम्बन्ध में जो असत्यता है, उसका निषेध करके सत्यता का प्रतिपादन किया है।
सर्वशून्यतावादी लोक और अलोक दोनों का अस्तित्व नहीं मानते । वे कहते हैं कि स्वप्न, इन्द्रजाल और माया में प्रतीत होने वाले पदार्थ जैसे मिथ्या हैं, वैसे ही अस्वप्नावस्था में प्रतीत होने वाले जगत् के सभी दृष्य मिथ्या हैं । अपने पक्ष की सिद्धि वे इस प्रकार करते हैं----'जगत् में जितने भी दृश्य पदार्थ प्रकाशित हो रहे हैं, वे सभी अपने-अपने अवयवों के द्वारा ही प्रकाशित हो रहे हैं । इसलिए जब तक उनके अवयदों का अस्तित्व सिद्ध न हो जाय, तब तक उनका अस्तित्व सिद्ध नहीं हो सकता । और अवयवों का अस्तित्व सिद्ध होना सम्भव नहीं है, क्योंकि अन्तिम अवयव परमाणु है -यानी अवयवों की धारा परमाणु में जाकर समाप्त होती है। और परमाणु इन्द्रियातीत (इन्द्रियों से अग्राह्य) है, इसलिए उसका अस्तित्व सिद्ध होना सम्भव नहीं है । परमाणु रूप अवयव का अस्तित्व सिद्ध न होने से जगत् के दृश्य पदार्थों का अस्तित्व भी सिद्ध नहीं हो सकता ।
यदि जगत् के दृश्य पदार्थ अपने-अपने अवयवों के द्वारा प्रकाशित न मानकर अवयवी के द्वारा प्रकाशित माने जाएँ तो भी उनकी सिद्धि नहीं होती । इस सम्बन्ध में प्रश्न होगा कि वह अवयवी अपने प्रत्येक अवयव में सम्पूर्णरूप से स्थित माना जाएगा या अंशतः स्थित माना जाएगा ? यदि उसे प्रत्येक अवयव में सम्पूर्णतः स्थित माना जाएगा तो जितने अवयव हैं, उतने ही अवयवी मानने पड़ेंगे । जो किसी को भी अभीष्ट नहीं है । सभी दार्शनिक एक ही अवयवी मानते हैं । अतः प्रत्येक अवयव में अवयवी की सम्पूर्णतः स्थिति तो नहीं मानी जा सकती । रही बात अंशतः स्थिति की। अवयवी अपने प्रत्येक अवयव में अशंत: स्थित रहे, यह भी सम्भव नहीं है । क्योंकि प्रश्न होता है कि वह अंश क्या है ? यदि अवयव ही अंश है तो फिर वही बात आती है, जो अवयव पक्ष में कही गई है । यदि वह अंश अवयवी से पृथक है, तब फिर पुनः वही प्रश्न उपस्थित होगा कि उस अंश में वह अवयवी सम्पूर्णतः स्थित रहता है या अंशत: ? तो पहला प्रश्न फिर खड़ा हो जाता है । अतः इस उत्तर में अनवस्थादोष है । इस प्रकार विचारपूर्वक देखने से किसी भी दृश्य पदार्थ का कोई
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