Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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पंचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्रुत
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अतः राग और द्वष कोई पदार्थ नहीं हैं, ऐसा कुछ दार्शनिक कहते हैं । वस्तुतः यह मान्यता यथार्थ नहीं है। क्योंकि अवयवी या समुदाय अवयवों से कथञ्चित् भिन्न और कञ्चित् अभिन्न है। ऐसा न मानने से घटपटादि पदार्थों में जो एकत्व का व्यवहार होता है, वह किसी तरह भी नहीं हो सकता, क्योंकि अवयव अनेक हैं, एक नहीं है। अतः विवेकी पुरुष को क्रोध, मान, माया, लोम, राग और द्वष का अस्तित्व अवश्य मानना चाहिए, यही इन गाथाओं का तात्पर्य है ।
मूल पाठ णत्थि चाउरते संसारे, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि चाउरते संसारे, एवं सन्न निवेसए ॥ २३ ॥ णत्थि देवो व देवी वा, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि देवो व देवी वा, एवं सन्न निवेसए ॥२४॥ पत्थि सिद्धी असिद्धी वा, णेवं सन्न निवेसए। अत्थि सिद्धी असिद्धी वा, एवं सन्न निवेसए ॥ २५ ॥ णत्थि सिद्धी नियं ठाणं, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि सिद्धी नियं ठाणं, एवं सन्न निवेसए ॥२६॥ णत्थि साहू असाहू वा, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि साहू असाहू वा, एवं सन्न निवेसए ॥२७॥ णत्थि कल्लाण पावे वा, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि कल्लाण पावे वा, एवं सन्नं निवेसए ॥ २८ ॥
संस्कृत छाया नास्ति चातुरन्तः संसारो, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति चातुरन्तः संसारः, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। २३ ।। नास्ति देवो वा देवी वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत । नास्ति देवो वा देवी वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। २४ ।। नास्ति सिद्धिरसिद्धिर्वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति सिद्धिरसिद्धिर्वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। २५ ।। नास्ति सिद्धिनिजं स्थानम्, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति सिद्धिनिजं स्थानं, एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥ २६ ॥ नास्ति साधुरसाधुर्वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति साधुरसाधुर्वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। २७ ।।
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