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सूत्रकृतांग सूत्र नास्ति कल्याणः पापोवा, नैवं संज्ञां निवेशयेत । अस्ति कल्याणः पापो वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। २८ ।।
अन्वयार्थ (चाउरते संसारे णत्थि एवं सन्नं न निवेसए) चार गति वाला संसार नहीं है, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए, (चाउरते संसारे अस्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु चार गति वाला संसार है, यही विचार रखना चाहिए ॥ २३ ॥ ।
(देवो वा देवी वा पत्थि एवं सन्नं न निवेसए) देव या देवी नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, किन्तु (देवो वा देवी वा अस्थि एवं सन्नं निवेसए) देव और देवी हैं, यही बात सत्य मानना चाहिए ॥ २४ ॥
(सिद्धी असिद्धी वा पत्थि एवं सन्नं न निवेसए) सिद्धि या असिद्धि नहीं है, यह ज्ञान नहीं रखना चाहिए, (सिद्धी असिद्धी वा अत्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु सिद्धि या असिद्धि हैं, यही बुद्धि रखनी चाहिए ।। २५ ।।।
(सिद्धी नियं ठाणं णत्थि एवं सन्नं न निवेसए) सिद्धि जीव का निज स्थान नहीं है, ऐसा नहीं मानना चाहिए । इसके विपरीत (सिद्धी नियं ठाणं अस्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु सिद्धि जीव का निजस्थान है, यही सिद्धान्त मानना चाहिए ॥ २६ ।।
(साहू असाहू वा पत्थि एवं सन्नं न निवेसए) साधु और असाधु नहीं है, ऐसा नहीं मानना चाहिए, (साहू असाहू वा अस्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु साधु और असाधु हैं, यही सिद्धान्त मानना चाहिए ॥ २७ ॥
(कल्लाण पावे वा णत्थि एवं सन्नं न निवेसए) कल्याणवान् या पापी नहीं हैं, ऐसा नहीं मानना चाहिए, (कल्लाण पावे वा अत्थि एवं सन्नं निवेसए) किन्तु कल्याणवान् भी हैं और पापी भी है, यही बात माननी चाहिए ॥ २८॥
व्याख्या चातुर्गतिक संसार है, यही विचार यथार्थ है
२३वीं गाथा में चार गति वाला संसार है या नहीं ? इस सम्बन्ध में सर्वज्ञ भगवान की मान्यता दी गई है।
वास्तविक मान्यता यह है कि यह संसार चार गतियों वाला है । नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव, ये चार गतियाँ, इस संसार की मानी गई हैं । परन्तु कई मतवादी कहते हैं-यह संसार कर्मबन्धनरूप है तथा समस्त जीवों को एकमात्र दुःख देने वाला है । इसलिए यह एक ही प्रकार का है । तथा कोई कहते हैं-इस जगत् में मनुष्य और तिर्यञ्च ये दो ही प्रकार के प्राणी दृष्टिगोचर होते हैं, देव और नारक नहीं पाए जाते । इसलिए संसार दो ही गति वाला है । और इन दो गतियों में ही सुख-दुःख की उत्कृष्टता पाई जाती है । अतः संसार में दो ही गति माननी चाहिए, चार नहीं ।
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