Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
एक अंश को देखकर भी उसे जान लेते हैं कि यह अमुक वस्तु है । परन्तु वह अवयवी अपने अवयवों से एकान्त भिन्न है या एकान्त अभिन्न है, यह नहीं मानकर अवयव से वह कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न है, यह अनेकान्तात्मक सिद्धान्त ही निर्दोष
और सर्वमान्य है। इस प्रकार विद्वानों को लोक-अलोक का अस्तित्व मानकर वे अवश्य हैं, ऐसा मानना चाहिए, परन्तु वे नहीं हैं, ऐसा मानना उचित नहीं है, यही इस गाथा का तात्पर्य है ।
सारांश लोक-अलोक दोनों नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु लोक और अलोक दोनों हैं, यही मान्यता रखनी चाहिए।
मूल पाठ णत्थि जीवा अजीवा वा, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि जीवा अजीवा वा, एवं सन्न निवेसए ॥१३॥ णत्थि धम्मे अधम्मे वा, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि धम्मे अधम्मे वा, एवं सन्न निवेसए ॥१४॥ णत्थि बंधे व मोक्खे वा, णेवं सन्न निवेसए। अत्थि बंधे व मोक्खे वा, एवं सन्न निवेसए ॥१५॥ णत्थि पुणे व पावे वा, णेवं सन्न निवेसए। अस्थि पुण्णे व पावे वा, एवं सन्नं निवेसए ॥१६॥ णत्थि आसवे संवरे वा, णेवं सन्न निवेसए । अत्थि आसवे संवरे वा, एवं सन्न निवेसए ॥१७॥ णत्थि वेयणा निज्जरा वा, णेवं सन्न निवेसए । अस्थि वेयणा निज्जरा वा, एवं सन्न निवेसए ॥१८॥ णत्थि किरिया अकिरिया वा, जेवं सन्न निवेसए। अत्थि किरिया अकिरिया वा, एवं सन्न निवेसए ॥१९॥
संस्कृत छाया नास्ति जीवोऽजीवो वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति जीवोऽजीवो वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। १३ ।। नास्ति धर्मोऽधर्मो वा, नैवं संज्ञां निवेशयेत् । अस्ति धर्मोऽधर्मो वा, एवं संज्ञां निवेशयेत् ।। १४ ।।
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