Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
के रूप में उत्पन्न होते हैं । (ते जीवा तेसिं पुढवीजोणियाणं उदगजोणियाणं रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहीजोणियाणं हरियजोणियाणं रुक्खाणं अज्झारोहाणं तणाणं ओसहीणं हरियाणं मूलाणं जाव बीयाणं आयाणं कायाणं जाव कूराणं उदगाणं अवगाणं जाव पुक्खलच्छिभगाणं सिणेहमाहारेति ) वे जीव उन पृथ्वीयोनिक वृक्षों के, जलयोनिक वृक्षों के, वृक्षयोनिक वृक्षों के, अध्यारुहयोनिक वृक्षों के, एवं तृणयोनिक, औषधियोनिक, हरितयोनिक वृक्षों के तथा वृक्ष, अध्यारुह, तृण, औषधि, हरित, मूल से लेकर बीज तक तथा आय वृक्ष, कायवृक्ष से लेकर कूरवृक्ष एवं उदक, अवक से लेकर पुष्कराक्ष वृक्षों तक के स्नेह का आहार करते हैं । (ते जीवा पुढवीसरीरं जाव आहारति संतं) वे जीव पृथ्वी आदि के शरीरों का भी आहार करते हैं । (तेस रुक्खजोणियाणं अज्झारोहजोणियाणं तणजोणियाणं ओसहिजोणियाणं हरियजोणियाणं मूलजोणियाणं कंदजोणियाणं जाव बीयजोणियाणं आयजोणियाणं कायजोणियाणं जाव कूरजोणियाणं उदगजोगियाणं अवगजोणियाणं जाव पुवखलच्छि भगजोणियाणं तसपाणाणं अवरेऽवि सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं ) उन वृक्षों से उत्पन्न तथा अध्यारुहों से उत्पन्न, तृणों से उत्पन्न, औषधियों से उत्पन्न, हरितों से उत्पन्न, मूलों, कन्दों, यावत् बीजों से उत्पन्न, आर्यवृक्षों से उत्पन्न, काय वृक्षों से लेकर कूर वृक्षों से उत्पन्न, उदक से उत्पन्न, अवक से उत्पन्न, और पुष्कराक्ष से उत्पन्न त्रसप्राणियों के नाना वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श तथा आकार-प्रकार वाले दूसरे शरीर भी होते हैं । ऐसा तीर्थंकरदेवों ने कहा है ।
व्याख्या
विभिन्न योनिक वनस्पतियों की उत्पत्ति एवं आहारादि का विश्लेषण
इस सूत्र में विभिन्न कोटि के वनस्पतिकायिक जीवों के विभिन्न आलापकों तथा आहार आदि के विषय में शास्त्रकार ने निरूपण किया है ।
निम्नलिखित वनस्पतियों के तीन-तीन आलापक होते हैं - ( १ ) पृथ्वीयोनिक वृक्षों में, (२) वृक्षियोनिक वृक्षों में, (३) वृक्षयोनिक वृक्षों के मूल से लेकर बीज तक के अवयवों में, (४) वृक्षयोनिक अध्यारुहों में ( ५ ) अध्यारुहयोनिक अध्यारुहों में तथा (६) अध्यारुहयोनिक मूल से लेकर बीज तक के अवयवों में, (७) पृथ्वीयोनिक तृणों में, (८) तृणयोनिक तृणों में, (६) तृणयोनिक मूल से लेकर बीज तक के अवयवों में, (१०) इसी प्रकार औषधि तथा हरित में भी तीन-तीन आलापक होते हैं ।
इसी प्रकार पृथ्वीयोनिक आय, काय से लेकर कूर नामक वृक्षों में, जलयोनिक वृक्षों में, वृक्षयोनिक वृक्षों में, वृक्षयोनिक मूल से लेकर बीजों में इसी प्रकार अध्यारुहों, तृणों, ओषधियों और हरितों में तीन-तीन आलापक होते हैं ।
तथा ये सब वनस्पतिकायिक जीव पूर्वोक्त वृक्षों के स्नेह का आहार करते हैं तथा पृथ्वी आदि के शरीरों का भी आहार करते हैं । इन जीवों के विभिन्न रंग-रूप, आकार-प्रकार, गन्ध, रस और स्पर्श वाले शरीर भी होते हैं ।
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