Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र सरीरा जावमक्खायं सेसं तिन्नि आलावगा जहा उदगाणं) उन वस और स्थावरों से उत्पन्न पृथ्वी से लेकर सूर्यकान्त मणि पर्यन्त प्राणियों के दूसरे भी नानावर्ण, गन्ध, रस, सर्श, आकार-प्रकार के शरीर बताये गये हैं। शेष तीन आलापक जल के समान ही समझ लेना चाहिए।
व्याख्या
पृथ्वीकायिक जीवों के प्रकार एवं आहारादि का विवरण
इस सूत्र में पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति, प्रकार एवं आहारादि का निरूपण किया गया है । बात यह है कि कई जीव ऐसे होते हैं, जो त्रस एवं स्थावर प्राणियों के सजीव या निर्जीव शरीरों में विविध प्रकार के पृथ्वीकाय के रूप में उत्पन्न होते हैं । वे पृथ्वीकायिक जीव अनेक प्रकार के होते हैं। कई मिट्टी के रूप में, कई कंकड़ों के रूप में एवं कई रेत (बालु) के रूप में, कई पत्थर के टुकड़ों के रूप में, कई शिला (चट्टान) के रूप में स्वकर्मोदयवश उत्पन्न होते हैं । कई हाथी के दांतों में मुक्तारूप में, कई स्थावर जीव बांस आदि में मुक्ताफल के रूप में, कई नमक के रूप में उत्पन्न होते हैं । कई गोमेद्यक, रुचक, अंक, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजमोचक, इन्द्रनील, चन्दनक, गेरुक, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रप्रभ, वैडूर्य, जलकान्त, सूर्यकान्त आदि मणियों और रत्नों के रूप में उत्पन्न होते हैं। ये सब पृथ्वीकायिक जीव होते हैं । ये सब जीव उन विभिन्न त्रस और स्थावर प्राणियों के स्नेह का आहार करते हैं। इसके अतिरिक्त ये पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति के शरीरों का भी आहार करते हैं। उनके शरीर अलग-अलग आकार-प्रकार, रंग-रूप आदि के होते हैं । शेष सब बातें पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए। इनके भी जलकायिक जीवों की तरह चार आलापक होते हैं।
मूल पाठ अहावर पुरक्खायं सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता णाणाविहजोणिया गाणाविहसंभवा जाणाविहवुकमा सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीरवुक्कमा सरोराहारा कम्मोवगा कम्मनियाणा कम्मगइया कम्मठिइया कम्मणा चेव विप्परियासमुर्वेति । से एवमायाणह से एवमायाणित्ता आहारगुत्ते सहिए सया जए त्तिबे मि ॥ सू० ६२ ॥
संस्कृत छाया __ अथाऽपरं पुराख्यातम्-सर्वे प्राणाः सर्वे भूताः सर्वे जीवाः, सर्वे सत्त्वाः नानाविधयोनिकाः नानाविधव्युत्क्रमा: शरीरयोनिकाः शरीरसम्भवाः,
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