Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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तृतीय अध्ययन : आहार-परिज्ञा
२५७ अनाभोग से । अनाभोग से होने वाला आहार क्षुधावेदनीय के उदय होने पर ही होता है, अन्य समय में नहीं।
पंचेन्द्रिय मनुष्यों और तिर्यंचों की उत्पत्ति, आदि का सभी वर्णन प्रायः एक सरीखा है।
मूल पाठ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया णाणाविहसंभवा, जाणाविहवुक्कमा तज्जोणिया तस्संभवा तदुवकमा कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवुक्कमा णाणाविहाणं तसथावराणं पोग्गलाणं सरीरेसु वा सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा अणुसूयत्ताए विउदृति । ते जोवा तेसि णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेंति पुढवीसरीरं जाव संतं । अवरेऽवि यणं तेसि तसथावरजोणियाणं अणुसूयगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं । एवं दुरूवसंभवत्ताए । एवं खुरदुगताए ॥ सू० ५८ ।।
संस्कृत छाया अथाऽपरं पुराख्यातमिहैकतये सत्त्वा: नानाविधयोनिका: नानाविधसम्भवाः, नानाविधव्युत्क्रमाः । तद्योनिकास्तत्सम्भवास्तदुपक्रमाःकर्मोपगाः, कर्मनिदानेन तत्र व्यत्क्रमा: नानाविधानां त्रसस्थावरणां पूदगलानां शरीरेषु सचित्तेषु अचित्तेषु वा अनुस्यूततया विवर्तन्ते । ते जीवास्तेषां नानाविधानां त्रसस्थावरणां प्राणानां स्नेहमाहारयन्ति । ते जीवा आहारयन्ति पृथिवी शरीरं यावदपराण्यपि च तेषां त्रसस्थावर योनिकानामनुस्यूतकानां शरीराणि नानावर्णानि यावदाख्यातानि । एवं दुरुपसम्भवतया एवं चर्मकीटतया ॥ सू० ५८ ॥
अन्वयार्थ (अहावरं पुरक्खायं) इसके अनन्तर श्री तीर्थंकरदेव ने अन्य जीवों की उत्पत्ति और आहार के विषय में पहले वर्णन किया है । (इहेगइया सत्ता णाणाविहजोणिया) इस जगत् में कई प्राणी विभिन्न योनियों में पैदा होते हैं । (णाणाविहसंभवा) वे अनेक प्रकार की योनियों में स्थित रहते हैं, (णाणाविहवुक्कमा) तथा वे अनेक प्रकार की योनियों में वृद्धि पाते हैं । (तज्जोणिया तस्संभवा तदुवकमा) नाना प्रकार की उनउन यौनियों में उत्पन्न, उन्हीं में स्थित और उन्हीं योनियों में बढ़े हुए वे जीव (कम्मोवगा कम्मणियाणेणं तत्थवुक्कमा) अपने पूर्वकृत् कर्मों का अनुसरण करते हुए उन कर्मों
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