Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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तृतीय अध्ययन : आहार-परिज्ञा
२५६ प्राणियों का आकार बहुत ही भौंड़ा भद्दा (कुत्सित) होता है, और ये अपने उत्पत्तिस्थान में स्थित मल-मूत्र का ही आहार करते हैं। जैसे पंचेन्द्रिय प्राणियों के मल-मूत्र से विकलेन्द्रिय प्राणी उत्पन्न होते हैं, वैसे ही वे तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय प्राणियों के शरीर में चर्मकीट रूप से उत्पन्न होते हैं। जिन्दा गाय और भैंस के शरीर में बहुत-से चर्मकीट पैदा हो जाते हैं, वे गाय-भैंस की चमड़ी खाकर वहाँ गड्ढा कर देते हैं। उस गड्ढे में से जब खून निकलने लगता है, तब वे उसी गड्ढे में जम (स्थित हो) कर उसके रक्त का आहार करते हैं। गाय-भैंस के अचित्त शरीर में भी विकलेन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं । सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार की वनस्पतियों में भी घुण और कीट आदि विकलेन्द्रिय प्राणी पैदा हो जाते हैं और अपनी आश्रयदात्री उसी वनस्पति का ही आहार करके जीते हैं।
मूल पाठ अहावर पुरक्खायं इहेगइया सत्ता णाणाविह जोणिया जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुक्कमा णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सरीरेसु सचित्तेसु वा अचित्तेसु वा तं सरीरगं वायसं सिद्ध वा वायसंगहियं वा वायपरिग्गहियं उड्ढवाएसु उड्ढभागी भवति, अहेवाएसु अहेभागी भवति, तिरियवाएसु तिरियभागी भवति, तं जहा-ओसा हिमए महिया करए हरतणुए सुद्धोदए । ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेति । ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं । अवरेऽवि य णं तेसि तसथावरजोणियाणं ओसाणं जाव सुद्धोदगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं ।
___ अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणिया उवगसंभवा जाव कम्मणियाणेणं तत्थवुक्कमा तसथावरजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउटंति । ते जीवा तेसि तसथावरजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति । ते जीवा आहारेति पुढविसरीरं जाव संतं । अवरेऽवि य गं तेसि तसथावरजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं । __अहावरपुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मणियागेणं तत्थवुक्कमा उदगजोणिएसु उदएसु उदगत्ताए विउति । ते जीवा तेसि उदगजोणियाणं उदगाणं सिणेहमाहारेति । ते जीवा आहारति पुढवीसरीर जाव संतं । अवरेऽवि य णं तेसि उदगजोणियाणं उदगाणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं ।
अहावरं पुरक्खायं इहेगइया सत्ता उदगजोणियाणं जाव कम्मणिया
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