Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र य जहा उरपरिसप्पाण तहा भाणियन्वं) वे जीव भी अपने-अपने बीज और अवकाश के द्वारा ही उत्पन्न होते हैं और उरपरिसर्प जीवों के समान ये जीव भी स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न होते हैं, ये सब बातें पूर्ववत् जान लेनी चाहिए। (जाव सारूविकडं संत) ये जीव भी अपने किये हुए आहार को पचाकर अपने शरीर में परिणत कर लेते हैं। (तसि णाणाविहाणं भुयपरिसप्पपंचिदियथलयरतिरिक्खाण तं० गोहाण जावमक्खायं) उन अनेक जाति वाले भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के दूसरे भी नाना वर्ण वाले शरीर होते हैं, यह भी तीर्थकरदेव ने कहा है।
(अह णाणाविहाणं खचरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अवरं पुरक्खायं) इसके पश्चात् श्री तीर्थंकरदेव ने अनेक प्रकार को जाति वाले आकाशचारी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के विषय में कहा है। (तं जहा-चम्मपक्खीणं लोमपक्खीणं समुग्गपक्खीणं विततपक्खीणं) जैसे कि-चर्मपक्षी, रोमपक्षी, समुद्रपक्षी और विततपक्षी (इनकी उत्पत्ति
और आहार के विषय में भगवान् ने यह कहा है) (तसि च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए जहा उरपरिसप्पाणं नाणत्तं) ये प्राणी अपनी उत्पत्ति के योग्य बीज और अवकाश के द्वारा उत्पन्न होते हैं और स्त्री-पुरुष के संयोग से ही इनकी भी उत्पत्ति होती है, शेष बातें उरपरिसर्प जाति के पाठ के समान ही जान लेनी चाहिए।(ते जीवा डहरा समाणा माउगात्तसिणेहमाहारेंति) ये प्राणी गर्भ से निकलकर बाल्यावस्था में माता के स्नेह का आहार करते हैं । (आणुपुव्वेणं वुड्ढा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे) और वे क्रमशः बड़े होकर वनस्पतिकाय और त्रसस्थावर प्राणियों का आहार करते हैं। (ते जीवा आहारेंति पुढ बीसरीरं जाव संतं) ये प्राणी पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक के जीवों के शरीरों का भी आहार करते हैं। (तसि णाणाविहाणं खचरचिदियतिरिक्खजोणियाणं चम्मपक्खीणं जाव अवरेऽवि अक्खायं) इन अनेक प्रकार की जाति वाले चर्मपक्षी आदि आकाशचारी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के और भी अनेक प्रकार के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श एवं आकार-प्रकार के शरीर होते हैं, ऐसा श्री तीर्थंकर देव ने कहा है।
व्याख्या तिर्यञ्च जीवों की उत्पत्ति और आहार के सम्बन्ध में
इस सूत्र में तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों के उत्पन्न होने की प्रक्रिया और आहार के सम्बन्ध में निरूपण किया गया है । सर्वप्रथम पंचेन्द्रिय जलचर प्राणियों के सम्बन्ध में बताया गया है। यों तो जलचर प्राणियों (जो कि पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च हैं) की अनेक योनियां हैं। यहाँ मत्स्य, कच्छप, मगरमच्छ और घड़ियाल (ग्राह) आदि कुछ जलचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के नाम गिनाये गये हैं। ये जीव अपने पूर्वकृत कर्म फल भोगने के लिए जलचर तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय योनि में जन्म धारण करते हैं। जैसे मनुष्य अपने बाज और अवकाश के अनुसार जन्म धारण करते हैं; इसी तरह जलचर प्राणी भी
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