Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
वा एवं विप्पडिवेति कारणमावन्ने) इस प्रकार वह बुद्धिमान् पुरुष अपने या दूसरे के दुःख आदि को यों मानता है कि यह सब नियतिकृत हैं, किसी दूसरे कारण से नहीं। (से बेमि पाईणं वा ६ जे तस-थावरा पाणा ते एवं संघायमागच्छंति) अतः मैं (नियतिवादी) कहता हूँ कि पूर्व आदि दिशाओं में रहने वाले जो त्रस एवं स्थावर प्राणी हैं, वे नियति के प्रभाव से ही औदारिक आदि शरीर की रचना को प्राप्त करते हैं (ते एवं विपरियासमावज्जति) वे इस नियति के कारण ही बाल्य, युवा एवं वृद्ध अवस्था को प्राप्त करते हैं, (ते एवं विवेगमागच्छंति) वे नियति के वश ही शरीर से पृथक् (मरणशरण) हो जाते हैं, (ते एवं विहाणमागच्छंति) नियति के कारण ही वे काना, कुबड़ा आदि नाना प्रकार की दशाओं को प्राप्त करते हैं, (ते एवं संगतियंति) नियति के प्रभाव से वे नाना प्रकार के सुख-दुःखों का संग प्राप्त करते हैं। (उवेहाए णो एवं विप्पडिवेदेति) श्री सुधर्मा स्वामी श्री जम्बू स्वामी से कहते हैं-इस प्रकार नियति को ही समस्त कार्यों का कारण मानने वाले नियतिवादी आगे कही जाने वाली बातों को नहीं मानते- (किरियाइ वा जाव णिरएइ वा अणिरएइ वा) क्रिया, अक्रिया से लेकर प्रथम सूत्रोक्त नरक तथा नरक से भिन्न तक के पदार्थों को नियतिवादी नहीं मानते । (एवं ते विरूवरूवेहि कम्मसमारंभेहिं भोयणाए विरूवरूवाई कामभोगाई समारभंति) इस प्रकार वे नियतिवाद के चक्कर में पड़े हुए लोग नाना प्रकार के सावध कर्मों का अनुष्ठान करके काम-भोग का आरम्भ करते हैं । (तं सद्दहमाणा ते अणारिया विप्पडिवन्ना) उस नियतिवाद में श्रद्धा रखने वाले वे नियतिवादी अनार्य हैं, वे भ्रम पड़े हैं। (ते णो हव्वाए णो पाराए) वे न तो इस लोक के होते हैं,
और न ही परलोक के होते हैं, (अंतरा कामभोगेसु विसण्णा) अपितु वे कामभोगों में फंसकर कष्ट भोगते हैं। (चउत्थे पुरिसजाए णियइवाइए त्ति आहिए) यह चौथे पुरुषनियतिवादी का वर्णन हुआ।
(इच्चेए चत्तारि पुरिसजाया जाणापन्ना णाणाछंदा णाणासीला णाणादिट्ठी गाणारुई णाणारंभा णाणाअज्झवसाणसंजुत्ता) इस प्रकार ये पूर्वोक्त चार पुरुष भिन्न-भिन्न बुद्धि वाले, विभिन्न अभिप्राय वाले, भिन्न-भिन्न आचार वाले, पृथक्-पृथक् दृष्टि (दर्शन) वाले, अलग-अलग रुचि वाले, भिन्न-भिन्न आरम्भ वाले तथा अलग-अलग निश्चय वाले हैं। (पहीणपुव्वसंजोगा) इन्होंने अपने माता-पिता आदि पूर्व संयोगों को भी छोड़ दिया है, (आरियं मग्गं असंपत्ता) किन्तु आर्य-मार्ग को अभी तक पाया नहीं है, (इति ते णो हव्वाए णो पाराए अंतरा कामभोगेसु विसण्णा) इस कारण वे न तो इस लोक के रहते हैं, और न ही परलोक के होते हैं, किन्तु बीच में ही नाना प्रकार के कामभोगों में फँसे कष्ट पाते हैं।
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