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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
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को घात करने के इरादे से चलाये हुए शस्त्र से यदि किसी अन्य प्राणी का घात हो जाए तो उसे अकस्माद्दण्ड कहते हैं, क्योकि घातक पुरुष का आशय उस प्राणी के घात का न होने पर भी अचानक उसका घात हो जाता है। उदाहरणार्थ, हिरणों को मार कर अपनी आजीविका का चलाने वाला शिकारी किसी हिरण को लक्ष्य करके तीर चलाता है, मगर वह तीर, कभी-कभी लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाता है, यानी जिस हिरण को मारने के लिए तीर चलाया है, उसके नहीं लगता; अपितु वह किसी दूसरे पक्षी आदि प्राणी को लग जाता है और वह मर जाता है । इस प्रकार पक्षी को मारने का आशय न होने पर भी उस शिकारी (घातक) के हाथ से यदि उस पक्षी आदि का घात हो जाता है तो वह अकस्माद्दण्ड कहलाता है। किसान जब अपनी खेती की जमीन का परिशोधन (साफ) करता है तो पौधों को हानि करने वाले झाड़-झंखाड़घास आदि का सफाया करने हेतु वह उन पर शस्त्र चलाता है, मगर संयोगवश वह शस्त्र कभी-कभी घास पर न लगकर अनाज के पौधों पर लग जाता है, जिससे अनाज के पौधों का नाश हो जाता है । यद्यपि किसान का इरादा अनाज को काटने का नहीं होता, फिर भी अचानक उसके हाथ से अनाज के पौधों का नाश हो जाता है, इसे ही अकस्माद्दण्ड कहते हैं । इसी प्रकार मारने की इच्छा न होने पर भी व्यक्ति द्वारा चलाये गये शस्त्र से कोई अन्य प्राणी अचानक मर जाये तो वह अकस्माद्दण्ड के पाप का भागी हो जाता है । यही चौथे क्रियास्थान का स्वरूप है ।।
मूल पाठ अहावरे पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठिविपरियासियादडवत्तिएत्ति आहिज्जइ। से जहाणामए केइ पुरिसे माईहि वा, पिईहिं वा, भाईहि वा, भगिणीहि वा, भज्जाहिं वा, पुत्तेहिं वा, धूताहिं वा, सुण्हाहि वा, सद्धि संवसमाणे मित्तं अमित्तमेव मन्नमाणे मित्ते हयपुत्वे भवइ दिद्विविपरियासियादंडे । से जहाणामए केइपुरिसे गामघायंसि वा, णगरघायंसिवा, खेड० कब्बड० मंडबघायंसि वा, दोणमुहघायंसि वा, पट्टणघायंसि वा, आसमघायंसि वा, सन्निवेसघायंसि वा, निग्गमघायंसि वा, रायहाणिघायंसि वा अतेणं तेणमिति मन्नमाणे अतेणे हयपुव्वे भवइ दिट्ठिविपरियासियादंडे, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावजंति आहिज्जइ। पंचमे दंडसमादाणे दिठिविपरियासियादंडवत्तिएत्ति आहिए ॥ सू० २१ ॥
संस्कृत छाया अथाऽपरं पञ्चमं दण्डसमादानं दृष्टिविपर्यासदण्डप्रत्ययिकमित्याख्या
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