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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
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चक्र आदि रेखाओं का फल बताने वाला शास्त्र, (८-वंजणं) मानव शरीर में मस, तिल आदि के फल को बताने वाला शास्त्र, (६-इथिलक्खणं) स्त्री के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१०-पुरिसलक्खणं) पुरुष के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (११-हयलक्खणं) घोड़े के लक्षणों को बताने वाला शालिहोल शास्त्र, (१२-गयलक्खणं) हाथी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१३-गोणलक्खणं) गौ के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१४ ---मिढलकखणं) मेष (भेड़ या मेंढ़ा) के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१५ - कुक्कुडलक्खणं) मुर्गे के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१६तित्तिरलक्खणं) तीतर के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१७-बट्ट गलक्षणं) बत्तख या बटेर के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१८-लावयलक्खणं) लावक पक्षी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१६--चक्कलक्खणं) चकवे के लक्षणों को बताने बाला शास्त्र, (२०--छत्तलक्षणं) छत्र के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२१-चम्मलक्खणं) चमड़े के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२२-दंडलक्खणं) दण्ड के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२३–असिलक्खणं) तलवार के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२४- मणिलक्खणं) मणि के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२५.--- कागिणिलखणं) काकिणी रत्न या कोड़ी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२६सुभगाकर) कुरूप को सुरूप बना देने वाली विद्या, (२७ ---दुब्भगाकर) सुरूप को कुरूप बनाने वाली विद्या, अथवा सधवा को विधवा बनाने वाली विद्या, (२८-- गब्भाकरं) गर्भवती बनाने वाली विद्या, (२६- मोहणकर) पुरुष या स्त्री को मोहित करने वाली विद्या, (३० -- आहवणि) तत्काल अनर्थ करने वाली आथर्वणी या जगत् का विध्वंस करने वाली विद्या, (३१ --पागसाणि) इन्द्रजाल विद्या, (३२–दव्वहोम) उच्चाटन करने के लिए मधु, घृत आदि द्रव्यों का होम करने की विद्या, (३३ -- खत्तियविज्ज) क्षत्रियों की विद्या यानी शस्त्रास्त्र विद्या, (३४चंदचरियं) चन्द्रमा की गति-चर्या आदि को बताने वाला शास्त्र, (३५-सूरचरियं) सूर्य की गति - चर्या आदि को बताने वाला शास्त्र, (३६- सुक्कचरियं) शुक्र की चाल को बताने वाला शास्त्र, (३७--बहस्सइचरियं) बृहस्पति-गुरु की चाल को बताने का शास्त्र, (३८ -- उक्कापायं) उल्कापात को बताने वाला शास्त्र, (३६दिसादाह) दिग्दाह को बताने वाला शास्त्र, (४० -- मियचक्क) ग्राम आदि में प्रवेश के समय जानवरों के दिखने का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र-मृगचक्र, (४१-वायसपरिमण्डलं) कौए आदि पक्षियों के बोलने का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र, (४२-पंसुवुट्ठि) धूलि-वर्षा का फल-निरूपण करने वाला शास्त्र, (४३-केसवुट्ठि) केश-वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र, (४४---मंसवुट्ठि) मांस-वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र, (४५- रुहिरवुट्ठि) रक्त की वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र,
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