Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
भक्तानि प्रत्याख्याय बहूनि भक्तानि अनशनया छेदयन्ति, बहूनि भक्तानि अनशनया छेदयित्वा आलोचितप्रतिक्रान्ताः समाधिप्राप्ता: कालमासे कालं कृत्वा अन्यतरेषु देवलोकेषु देवत्वाय उपपत्तारो भवन्ति । तद्यथा महद्धिकेषु महाद्युतिकेषु यावन्महासुखेषु शेषं तथैव यावदिदं स्थानमार्यम्, यावदेकान्तसम्यक् साधु, तृतीयस्य स्थानस्य मिश्रकस्य विभंगः एवमाख्यातः । अविरति प्रतीत्य बाल आख्यायते विरतिं प्रतीत्य पण्डित आख्यायते, विरत्यविरती प्रतीत्य बालपण्डित आख्यायते, तत्र या सा अविरतिः इदं स्थानमारम्भस्थानमनायं यावद् असर्वदुःखप्रहीणमार्गमकान्तमिथ्या असाधु । तत्र या सा सर्वतो विरतिः इदं स्थानमनारम्भस्थानमार्य यावत्सर्वदुःखप्रहीणमार्गमेकान्तसम्यक् साधु । तत्र ये ते सर्वतो विरताविरती इदं स्थानमारम्भ-नोऽआरम्भस्थानमिदं स्थानमार्य यावत् सर्वदुःखप्रहीणमार्गमेकान्तसम्यक् साधु ।। सू० ३६ ॥
अन्वयार्थ (अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जइ) इसके पश्चात् तीसरा स्थान जो मिश्र स्थान है, उसका भेद बताया जाता है, (इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया मणुस्सा भवंति तं जहा) इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कई मनुष्य ऐसे होते हैं, (अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा) जो अल्प इच्छा वाले, अल्पारंभी, अल्पपरिग्रही होते हैं, (धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति) वे धर्माचरण करते हैं, धर्म के अनुसार ही प्रवृत्ति करते हैं या धर्म की ही अनुज्ञा देते हैं, धर्मपूर्वक अपनी आजीविका चलाते हुए अपना जीवन यापन करते हैं। (सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा साहु) वे सुशील, सुन्दर व्रतधारी तथा आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले एवं साधनाशील सज्जन होते हैं । (एगच्चाओ पाणाइवायाओ जावज्जीवाए पडिविरया, एगच्चाओ अप्पडिविरया जाव) एक ओर वे किसी (स्थूल) प्राणातिपात से जीवनभर निवृत्त रहते हैं, और दूसरी ओर किसी (सूक्ष्म) प्राणातिपात से निवृत्त नहीं होते हैं, (जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया परपाणपरितावणकरा कम्मंता कज्जति ततोवि एगच्चाओ अप्पडिविरया) दूसरे जो कर्म सावद्य और अज्ञान को उत्पन्न करने वाले हैं, तथा अन्य प्राणियों को परिताप देने वाले किये जाते हैं, उनमें से कई कर्मों से वे निवृत्त नहीं होते।
(से जहाणामए समणोवासगा भवंति अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसवसंवरवेयणाणिज्जराकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसला) जैसे कि उनके नाम से विदित है, वे श्रमणों के उपासक (श्रावक) होते हैं, जो इस मिश्र स्थान के अधिकारी
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