Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
(एस खलु तच्चस्स ठाणस्स मिस्सगस्स विभंगे एवमाहिए) यह तीसरे मिश्र स्थान का विचार कहा गया है।
व्याख्या
तृतीय स्थान : मिश्रपक्ष का स्वरूप और विश्लेषण
___ इस सूत्र में तृतीय स्थान का वर्णन किया गया है जिसे शास्त्रकार ने मिश्र स्थान बताया है । इसमें धर्म और अधर्म दोनों का पलड़ा बराबर नहीं है। बल्कि जिस स्थान में पाप बहुत अधिक और पुण्य बिलकुल अल्पमात्रा में हैं वही शास्त्रकार की दृष्टि में मिश्र स्थान है क्योंकि इस स्थान को शास्त्रकार सर्वथा मिथ्या और बुरा बताते हैं। यह तभी हो सकता है, जबकि पुण्य का अंश बिलकुल नगण्य-सा हो । इस स्थान के अधिकारी मुख्यतया तापस हैं, जो या तो जंगल में रहते हैं या कोई कुटिया या आश्रम बनाकर रहते हैं अथवा ग्राम की सीमा पर रहते हैं। ये तापस अपने आप को धार्मिक और मोक्षार्थी बतलाते हैं । प्राणातिपात आदि दोषों से ये किञ्चित् निवृत्त भी देखे जाते हैं मगर वह निवृत्ति नहीं के बराबर है। क्योंकि एक तो ये मिथ्यात्व मल से दूषित रहते हैं तथा इन्हें जीव-अजीव का विवेक नहीं होता। दूसरे ये जिस पथ का अनुसरण करते हैं उसमें पाप बहुत और पुण्य बिलकुल अल्पमात्रा में होता है । अतः इस स्थान को यहाँ मिश्रस्थान कहा गया है ।
इस स्थान के अधिकारी मरने के पश्चात् किल्विषी देव होते हैं। फिर वहाँ से भ्रष्ट होकर ये मनुष्य लोक में आते हैं लेकिन यहाँ वे मूक एवं अंधे होते हैं । इस कारण इनका जो स्थान है, वह आर्य-जनों के लिए उपादेय एवं उचित नहीं है। वह केवलज्ञान को प्राप्त कराने वाला और समस्त दुःखों का नाशक नहीं है। किन्तु एकान्त मिथ्या और बुरा है। इस प्रकार तीसरे मिश्र स्थान का निरूपण तीर्थंकर देव ने किया है।
मूल पाठ अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ । इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया मणुस्सा भवंति -गिहत्था महेच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया अधम्माणुया (ण्णा) अधम्मिट्ठा अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मप(वि)लोई अधम्मपलज्जणा अधम्मसील-समुदायारा अधम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति ।
हण छिद भिद विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कुंचण-वंचण-माया-णियडि-कूडकवड-साइसंपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया
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