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________________ द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान १४५ चक्र आदि रेखाओं का फल बताने वाला शास्त्र, (८-वंजणं) मानव शरीर में मस, तिल आदि के फल को बताने वाला शास्त्र, (६-इथिलक्खणं) स्त्री के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१०-पुरिसलक्खणं) पुरुष के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (११-हयलक्खणं) घोड़े के लक्षणों को बताने वाला शालिहोल शास्त्र, (१२-गयलक्खणं) हाथी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१३-गोणलक्खणं) गौ के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१४ ---मिढलकखणं) मेष (भेड़ या मेंढ़ा) के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१५ - कुक्कुडलक्खणं) मुर्गे के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१६तित्तिरलक्खणं) तीतर के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१७-बट्ट गलक्षणं) बत्तख या बटेर के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१८-लावयलक्खणं) लावक पक्षी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (१६--चक्कलक्खणं) चकवे के लक्षणों को बताने बाला शास्त्र, (२०--छत्तलक्षणं) छत्र के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२१-चम्मलक्खणं) चमड़े के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२२-दंडलक्खणं) दण्ड के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२३–असिलक्खणं) तलवार के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२४- मणिलक्खणं) मणि के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२५.--- कागिणिलखणं) काकिणी रत्न या कोड़ी के लक्षणों को बताने वाला शास्त्र, (२६सुभगाकर) कुरूप को सुरूप बना देने वाली विद्या, (२७ ---दुब्भगाकर) सुरूप को कुरूप बनाने वाली विद्या, अथवा सधवा को विधवा बनाने वाली विद्या, (२८-- गब्भाकरं) गर्भवती बनाने वाली विद्या, (२६- मोहणकर) पुरुष या स्त्री को मोहित करने वाली विद्या, (३० -- आहवणि) तत्काल अनर्थ करने वाली आथर्वणी या जगत् का विध्वंस करने वाली विद्या, (३१ --पागसाणि) इन्द्रजाल विद्या, (३२–दव्वहोम) उच्चाटन करने के लिए मधु, घृत आदि द्रव्यों का होम करने की विद्या, (३३ -- खत्तियविज्ज) क्षत्रियों की विद्या यानी शस्त्रास्त्र विद्या, (३४चंदचरियं) चन्द्रमा की गति-चर्या आदि को बताने वाला शास्त्र, (३५-सूरचरियं) सूर्य की गति - चर्या आदि को बताने वाला शास्त्र, (३६- सुक्कचरियं) शुक्र की चाल को बताने वाला शास्त्र, (३७--बहस्सइचरियं) बृहस्पति-गुरु की चाल को बताने का शास्त्र, (३८ -- उक्कापायं) उल्कापात को बताने वाला शास्त्र, (३६दिसादाह) दिग्दाह को बताने वाला शास्त्र, (४० -- मियचक्क) ग्राम आदि में प्रवेश के समय जानवरों के दिखने का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र-मृगचक्र, (४१-वायसपरिमण्डलं) कौए आदि पक्षियों के बोलने का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र, (४२-पंसुवुट्ठि) धूलि-वर्षा का फल-निरूपण करने वाला शास्त्र, (४३-केसवुट्ठि) केश-वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र, (४४---मंसवुट्ठि) मांस-वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र, (४५- रुहिरवुट्ठि) रक्त की वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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