Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
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यते । तद्यथा नाम कश्चित् पुरुषः मातृभिर्वा, पितृभिर्वा, भ्रातृभिर्वा, भगिनीभिर्वा भार्याभिर्वा पुत्रैर्वा दुहितृभिर्वा, स्नुषादिभिर्वा सार्धं संवसन् मित्रममित्रमेव मन्यमानः मित्रं हतपूर्वो भवति दृष्टिविपर्यासदण्डः । तद्यथा नामकः कोऽपि पुरुषः ग्रामघाते वा, नगरघाते वा, खेडकर्वटमडम्बघाते वा, द्रोणमुखघाते वा, पट्टनघाते वा आश्रमघाते वा, सन्निवेशघाते वा, निर्गमघाते वा, राजधानीघाते वा, अस्तेनं स्तेनमिति मन्यमानः अस्तेनं हतपूर्वो भवति दृष्टिविपर्यास दण्ड: । एवं खलु तस्य तत्प्रत्ययिकं सावद्यमित्याधीयते । पंचमं दण्डसमादानं दृष्टिविर्यासप्रत्ययिकमाख्यातम् ।। सू० २१ ।।
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अन्वयार्थ
( अहावरे पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठिविपरियासियादंडवत्तिएत्ति आहिज्जइ ) इसके पश्चात् पाँचवें क्रियास्थान दृष्टिविपर्यासदण्डप्रत्ययिक के सम्बन्ध में कहा जाता है । ( से जहाणामए केइ पुरिसे माईहिं वा, पिईहिं वा, भाईहिं वा, भगिणीहिं वा, भज्जाहिं वा, पुतेहि वा, धूताहि वा, सुहाहिं वा, सद्धि दसमाणे मित्तं अमित्तमेव मनमाणे मित्ते हyed भवइ) माता, पिता, भाई, बहन, स्त्री, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधू के साथ निवास करता हुआ कोई पुरुष मित्र को शत्रु मानकर शत्रु के भ्रम से मित्र को ही मार देता है । (दिट्ठिविप्परिया सियादंडे ) इसी को दृष्टिविपर्यासदण्ड कहते हैं। क्योंकि यह दण्ड गलतफहमी से होता है, जान-बूझकर नहीं । ( से जहानामए के पुरिसे गामघायंसि वा, नगरघायंसि वा, खेडकब्बडमंडबघायंसि वा, दोणमुहघायंसि वा, पट्टणघायंसि वा, आसमघायंसि वा संनिवेसघायंसि वा, निग्गमघायंसि वा, रायहाणिघायंसि वा अतेणं तेणमिति मन्त्रमाणे अतेणे हयपुच्वे भवइ) ग्राम, नगर, खेड, has, मडम्ब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, सन्निवेश, निगम और राजधानी के घात के समय यदि कोई पुरुष किसी चोर से भिन्न व्यक्ति को चोर समझकर मार डाले तो वह चोर - भिन्न व्यक्ति को भ्रम से मारता है । (दिट्ठिविपरियासिया दंडे) इसलिए इस दंड को दृष्टिविपर्यासदण्ड कहते हैं । ( एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जंति आहिज्जइ) इस प्रकार जो पुरुष अन्य प्राणी के भ्रम से अन्य प्राणी को मारता है, उसे दृष्टिविपर्यासदण्ड का पाप लगता है । (पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठिविपरियासियादंडवत्तिएत्ति आहिए ) यह दृष्टिविपर्यासदण्डप्रत्ययिक नामक पाँचवें क्रियास्थान का स्वरूप बताया गया है ।
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व्याख्या
पञ्चम क्रियास्थान : दृष्टिविपर्यास दण्डप्रत्यय
इस सूत्र में पाँचवें क्रियास्थान का निरूपण किया गया है। इसका नाम दृष्टि
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