Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
पुनर्वयमन्येषु ज्ञातिसंयोगेषु मूर्च्छामः, इति संख्याय वयं ज्ञातिसंयोगं विप्रहास्यामः । स मेधावी जानीयात् बहिरंगमेतत्, इदमेव उपनीततरं तद्यथाहस्ती मे पादी मे बाहू मे उरू मे उदरं मे शीर्षं मे शीलं मे आयुर्मे बलं मे वर्णो मे त्वचा मे छाया मे श्रोत्रं मे चक्षुर्मे घ्राणं मे जिह्वा मे स्पर्शाः मे ममीकरोति (ममायते), वयसः परिजीर्यते । तद्यथा - आयुषोबलाद् वर्णात् त्वचः छायायाः श्रोत्राद् यावत् स्पर्शात् सुसन्धितः सन्धिर्विसन्धी भवति वलिततरंग : गात्रेषु भवति कृष्णाः केशाः पलिताः भवति, तद्यथा - यदपि च इदं शरीरम् उदारमाहारोपचितम् एतदपि च आनुपूर्व्या विप्रहातव्यं भविष्यति । इदं संख्याय स भिक्षुः भिक्षाचार्यायां समुत्थित: द्विधा लोकं जानीयात् । तद्यथा - जीवाश्चैव अजीवाश्चैव त्रसाश्चैव स्थावराश्चैव ॥ सू०१३ ||
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अन्वयार्थ
( से बेमि) श्री सुधर्मा स्वामी श्री जम्बू स्वामी से कहते हैं- मैं ऐसा कहता हूँ, ( पाईणं वा ६ संतेगइया मणुस्सा भवंति ) पूर्व आदि दिशाओं में नाना प्रकार के मनुष्य रहते हैं, (तं जहा -- आरिया वेगे, अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे, णीयागोया वेगे) जैसे कि कोई आर्य होते हैं, कोई अनार्य होते हैं, कोई उच्चगोत्रीय और कोई नीच गोत्रीय होते हैं, (वेगे कायमंता वेगे हस्समंता) कई मनुष्य ऊँचा ( लंबा ) होता है, कोई ठिगने कद के होते हैं । (वेगे सुवन्ना, वेगे दुवन्ना) किसी के शरीर का वर्ण सुन्दर होता है, किसी का असुन्दर होता है । ( वेगे सुरूवा वेगे दुरुवा) किसी का रूप मनोहर होता है, और किसी का रूप भद्दा होता है । (तसि च जणजाणवयाइं परिग्गहियाइं भवंति ) उन मनुष्यों का लोक और जनपद देश सम्पत्ति (परिग्रह) होता है, (अप्पयरा वा भुज्जरावा) किसी का परिग्रह थोड़ा और किसी का अधिक होता है । ( एगे तहप्पगारेहि कुलेहिं आगम्म भिक्खायरियाए समुट्ठिता) इनमें से कोई पुरुष पूर्वोक्त कुलों में से किसी कुल में जन्म लेकर विषय-भोगों को छोड़कर भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए उद्यत होते हैं । (एगे सतो वा वि जायओ य अणाययो वा उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता) कई तो विद्यमान ज्ञाति वर्ग, धन-धान्य सम्पत्ति को छोड़कर भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए तत्पर होते हैं, (वेगे असतो वावि णायओ य अणाययो य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता) और कोई अविद्यमान ज्ञातिवर्ग अज्ञातिवर्ग तथा धनधान्य आदि सम्पत्ति का त्याग करके भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए तैयार होते हैं। (जे ते सतो वा असतो वा णायओ य अणायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता पुव्वमेव तसि णायं भवइ) जो विद्यमान ज्ञातिवर्ग तथा धन-धान्य सम्पत्ति का त्याग करके भिक्षावृत्ति धारण करने के लिए समुद्यत होते हैं अथवा जो अविद्यमान ज्ञातिवर्ग एवं धन-धान्य आदि सम्पत्ति को छोड़कर भिक्षावृत्ति ग्रहण करते हैं, इन दोनों को
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