Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
११५
पोषणाय, पशुपोषणाय, नो अगारपरिवृद्धये, नो श्रमण-माहनपोषणाय, नो तस्य शरीरस्य किंचित् परित्राणाय भवति, स हन्ता, छेत्ता, भेत्ता, लुम्पयिता, विलुम्पयिता, उपद्रावयिता, उज्झित्वा बालोवरस्याऽऽभागी भवति अनर्थदण्डः । तद्यथा नामकः कश्चित् पुरुषः कच्छे वा, ह्रदे वा, उदके वा, द्रव्ये वा वलये वा, अवतमसे वा, गहने वा, गहनविदुर्गे वा, वने वा, वनविदुर्गे वा, पर्वते वा, पर्वतविदुर्गे वा, तृणानि उत्सर्म्य उत्सर्य स्वयमेव अग्निकायं निसृजति, अन्येनाऽपि अग्निकार्य निसर्जयति, अन्यमपि अग्निकार्य निसृजन्तं समनुजानाति अनर्थदण्डः । एवं च खलु तस्य तत्प्रत्ययिक सावद्यमाधीयते । द्वितीयं दण्डसमादानं अनर्थदण्डप्रत्ययिकमाख्यातम् ।। सू० १८ ॥
अन्वयार्थ (अहावरे दोच्चे दंडसमादाणे अणट्ठादंडवत्तिएत्ति आहिज्जइ) इसके पश्चात् दूसरा क्रियास्थान अनर्थदण्डप्रत्ययिक कहलाता है। (से जहाणामए केइ पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंति, ते णो अच्चाए, णो अजिणाए, णो मंसाए, णो सोणियाए) जैसे कोई पुरुष ऐसा होता है कि वह त्रस प्राणियों को अपने शरीर की रक्षा या संस्कार के लिए, चमड़े के लिए, मांस के लिए, और रक्त के लिए नहीं मारता है। (एवं हिययाए, पित्ताए, वसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, बालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, घाढाए, गहाए, लारुणिए, अट्ठीमंजाए) एवं हृदय के लिए, पित्त के लिए, चर्बी, पंख, पूछ, बाल, सींग, विषाण, दांत, दाढ़, नख, नाड़ी, हड्डी और हड्डी की चर्बी के लिए नहीं मारता। (णो हिसिस मेत्ति, णो हिंसति मेत्ति, णो हिसिस्संति मेत्ति) तथा इसने मेरे किसी सम्बन्धी को मारा है, अथवा मार रहा है, या मारेगा, इसलिए नहीं मारता। (णो पुत्तपोसणाए, णो पसुपोसणाए, णो अगारपरिबूहणाए) एवं पुत्र. पोषण, पशुपोषण, तथा अपने घर की मरम्मत एवं हिफाजत के लिए भी नहीं मारता, (णो समणमाहणवत्तणाहेळं, णो तस्स सरीरगस्स किचि विप्परियादित्ता भवंति) श्रमण और माहन के जीवन-निर्वाह के लिए तथा अपने शरीर या प्राणों की रक्षा के लिए उन पशुओं को नहीं मारता। (अणट्ठादंडे बाले हता) किन्तु प्रयोजन बिना ही वह मूर्ख प्राणियों को निरर्थक दण्ड देता हुआ उन्हें मारता है । (छेत्ता, भेत्ता, लुपइत्ता विलुपइत्ता, उद्दवइत्ता) वह उन्हें छेदन करता है, भेदन करता है, प्राणियों के अंगों को काट-काटकर अलग-अलग करता है, उनकी चमड़ी और आँखें निकालता है, उखाड़ता है, उन्हें डराता-धमकाता है। (उज्झिउं) वह विवेक का त्याग कर बैठा है (बालोवेरस्स आभागी भवइ) इसलिए बिना ही प्रयोजन प्राणियों को दण्ड देने वाला वह मूर्ख उन प्राणियों के साथ निरर्थक वैर बाँधने का भागी बन जाता है । (से जहाणामए
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